Do we really know what is corruption? Can anyone get rid of this?
आखिर भ्रष्टाचारी कौन है ?
भारत ही नहीं बल्कि दुनियां के अधिकतर देशाें में भ्रष्टाचार में वहां के नागरिक लिप्त पाए गए हैं। कई देशों की सरकार में शीर्ष नेतृत्व और उसकी कैबिनेट में बैठे लोग भी भ्रष्टाचार में लिप्त साबित हो चुके हैं। अब सवाल यह है कि भ्रष्टाचार है क्या ? इसकी शिक्षा लोगों को कहां से मिलती है ? इस बात को पड़ताल करने के लिए कुछ तथ्यपरक बातें हम आपके सामने रखना चाहते हैं।
अधिकतर देशों के नागरिक भ्रष्टाचार के लिए सरकारी नौकरियों में बैठे लोग को भ्रष्टाचार के लिए कसुरवार मानते हैं।यह धारणा को पूर्ण रूप से गलत नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन यह पूर्ण सत्य भी नही है। पिछले एक दो दशक से सरकार ने बैठे मंत्रीगण भी भ्रष्टाचार में आरोपित हुए हैं। दूसरी तरफ सांसदों, विधायकों , नगर परिषद के सदस्य और पंचायत स्तर तक के चुने हुए जन प्रतिनिधि भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं। ऐसा देखने में आता है कि इन चुने हुए जन प्रतिनिधियों की संपति और रहन सहन में बहुत तेजी उतरोतर वृद्धि होने लगती है। आम लोग यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि ये जन प्रतिनिधि जनता के पैसों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लूट रहे हैं।
कुछ लोग राजनीति में सिर्फ इसलिए पदार्पण करना चाहते है ताकि अधिक से अधिक धनोपार्जन किया जा सके। वही धन कुबेरों का एक ऐसा वर्ग भी राजनीति में आने के लिए रास्ते खोजते रहते हैं ताकि उनका ब्लैक मनी को व्हाइट में बदलने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल सके। ऐसे लोग राजनीतिक दलों को करोड़ों रुपए देकर राज्य सभा में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करना चाहते है।अब राजनीति के जरीए देश सेवा का भाव कुछ गिने चुने जन प्रतिनिधि के हिस्से में ही रह गया है। जिससे आम जनता के इस धारणा को बल मिलता है कि अब जन प्रतिनिधि क्षेत्र के विकाश और जनता के कल्याण से ज्यादा अपने आप को समृद्ध और पावरफुल बनाने में लगे रहते हैं।
कोई भी आदमी पैदा होते ही भ्रष्टाचारी तो होता नहीं है। वह परिवेश में होनेवाली घटनाओं से ही सब कुछ सीखता है। तो भ्रष्टाचार भी उसी परिवेश में सीखता होगा। आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि भ्रष्टाचार कैसे पनपता है ?
अगर मैं यह कहूं कि इसकी शिक्षा अधिकांश लोगों को उसके धर से ही बचपन में मिलती है तो आपको आश्चर्य जरूर होगा लेकिन यह गलत न होगा। आजकल के नवजात शिशुओं को खिलाने के समय अधिकतर माताएं टी वी में कोई कार्टून जो बच्चें की पसंद का हो चला देती है जिससे वह नन्हा सा शिशु जल्दी जल्दी और आसानी से खा लें। या फिर मोबाइल में आजकल गाने या कोई धुन उसकी पसंद की बजाई जाती है। लगभग एक सप्ताह ऐसा करने के बाद बच्चे को इसकी आदत लग जाती है उसके बाद मजाल है कि बिना यह सुविधा उपलब्ध कराए बच्चा खाना खा लें। अब आप सोच रहे होंगे इसमें बुराई क्या है ? अगर ऐसा करने से समय और ऊर्जा दोनो की बचत होती हैं तो यह तो अच्छा तरीका है। लेकिन जरा ठहरिए, यही आदत क्या हम उस शिशु के अलावा अन्यत्र जगहों पर भी आजमाते नही हैं। जेसे कि आप किसी दफ्तर में जाए और कोई सरकारी कर्मचारी यह कहकर आपको अगले दिन आने को कहे कि उस दिन का उसका कार्यकाल पूरा हो चुका है, तो हम समय और ऊर्जा की बचत करने के साथ साथ अगले दिन आने के झमेले से बचने के लिए हम स्वयं उस कर्मचारी को रिश्वत देने की पेशकश करते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि पुरी कागजी कार्यवाही नहीं करने के लिए हम रिश्वत की पेशकश करते हैं। जिस प्रकार बच्चा को खाना खिलाने के लिए संगीत या कार्टून चलाने की आदत अब एक मां के लिए मजबूरी बन जाता है। उसी प्रकार , अब सरकारी कर्मचारी को भी रिश्वत लेने की आदत लग जाता है ,अब आपके समय सीमा के अंदर ऑफिस में जाने और पुरी कागजी खानापूर्ति कर देने के बाद भी आपको रिश्वत देना ही पड़ता है।
हम जब बच्चें थे तो न तो घर में किसी के पास मोबाइल था न टीवी था। मोबाइल और टेलीविजन का आविष्कार भी न हुआ था। फिर भी हम खाना खाते तो होंगे। तब सामने दे दिया जाता होगा और आत्म निर्भर बनने की शिक्षा अवश्य दी गई होगी। ऐसा इसलिए कह सकता हूं कि तब के समय में लोगों को चार पांच बच्चें हुआ करते थे तो एक बच्चें को खिलाने में इतने नखरे झेलने का समय न रहता होगा। मुझे याद है अगर खाना पसंद ना आए तो ज्यादा फरमाइश करने पर दो चार थप्पड़ जड़ देने में भी माताएं गुरेज नहीं करती थीं। आजकल लोगों के एक या दो बच्चें होते हैं और माताएं जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहती है। इसके कई कारण हो सकते हैं जिसके मूल में जाना अभी उचित न होगा लेकिन जरा सोचिए, क्या होता अगर बच्चे को खिलाने में थोडा और धैर्य रखा जाता , या बिना रिश्वत की पेशकश किए कर्मचारी के बुलाने पर सही समय पर उपस्थित हो गए होते। तो हो सकता है कि बाद में जो मजबूर होकर करना पड़ता है वह नही करना पड़ता। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है हमलोग स्वयं उसे रिश्वत देने और लेने की शिक्षा देने लग जाते हैं। कई बार हम बच्चे को समय नहीं दे पाते तो रिश्वत में उसे महंगे गिफ्ट, चॉकलेट इत्यादि देकर खुश करने की कोशिश करते हैं। कई बार हम प्रलोभन देते हैं कि यदि तुमने परीक्षा में अच्छे अंक लाए तो हम तुम्हें साइकिल/मोटरसाइकिल/कार इत्यादि दिला देगें।
यह सभी प्रलोभन रिश्वत के ही प्रकार है। फिर कई बार बच्चा खुद डिमांड करने लगता है कि मेरे जन्मदिन पर या किसी और अवसर पर अगर आप ये उपहार नहीं लाकर देगें तो वह आपसे बात भी नहीं करेगा। मेरे पास ऐसे कई पेरेंट्स आते हैं जो इस प्रकार की समस्याओं से गुजर रहे होते हैं और हम से मदद की उम्मीद भी रखते हैं। कोई बच्चा प्ले स्टेशन की डिमांड करता है तो कोई महगे मोबाइल/मैकबुक/रेसिंग मोटरबाइक/कार इत्यादि लेने के लिए घर में ऐसा तनाव पैदा कर देता है कि मजबूर होकर पेरेंट्स हमारे पास आते हैं। क्योंकि तब उनका कोई भी तर्क बच्चें के दिमाग तक पहुंचता ही नहीं है।
कहने का तात्पर्य यह कि भ्रष्टाचार का आरोप हम हमेशा सरकार और उसके संस्थाओं में कार्य करने वाले कामगारों पर लगाते रहते हैं। लेकिन यह कहना गलत न होगा कि आम जनता भी भ्रष्टचार के लिए उतना ही जिम्मेदार है। शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने अपने जीवन में रिश्वत देकर कोई काम न कराई हो। रेडलाइट पार करने की सजा 100 रुपए है हम 50 रुपए की पेशकश करके ट्रैफिक पुलिस को चलान न काटने की गुजारिश करते हैं। कोई सामान खरीदते समय हम पक्की रसीद न लेने की गुजारिश करते हैं ताकि जीएसटी बचाया जा सके। फिर हम यह कहते हैं कि व्यवसायी वर्ग चोर है पुरे टैक्स जमा नहीं करते। जब हमने पुरे टैक्स दिया ही नहीं तो वे पुरे कैसे जमा करेंगे। लगभाग सभी लोग इस दोहरे मापदंड को अपनाते हैं।
राज्य सरकारों ने विधायकों के पुत्रों को बिना किसी प्रतियोगी परीक्षाओं के चयन के सरकारी नौकरियों में नियुक्ति कर दिया। यह भी एक प्रकार का भ्रष्टचार है। राज्यपाल तक पर यह आरोप लगने लगे है कि वे अपने अधिकार का उपयोग कर अपने सगे सम्भधियों की नियुक्ति अपने कार्यालय में करते हैं। स्कूल कॉलेज में गेस्ट टीचर के रूप में बहाली करते समय प्रिंसिपल अपने सगे संबंधियों को नियुक्त कर लेता है या करवा लेता है। सरकारी अधिकारी दफ्तर में आने जानें के लिए उपलब्ध कराई गई गाड़ी का प्रयोग अपनी पत्नी को बाजार में ले जाने और अपने बच्चो को स्कूल कॉलेज भेजने में करते हैं। सेना ने भी उच्च पदस्थ लोग अपने अर्दली से धर के कार्य करवाते हैं जिसके लिए उनको अनुमति नहीं है, ऐसी खबरें आती रहती है। सबसे आदर्शवादी शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रोफेसर अपने अधीन पी एच. डी कर रहे छात्र/छात्राओं से कई ऐसे कार्य करवाते हैं जो उनके विषय क्षेत्र का हिस्सा नहीं होता।
यह सभी भ्रष्टचार ही है। मतलब भ्रष्टचार की जड़े इतनी गहरी जमी है कि इससे मुक्ति पाना असम्भव सा लगता है। भ्रष्टाचार के लिए हम सभी भारतीय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
नोट: यह लेख किसी वर्ग या व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नही लिखा गया है। किसी की भावनाओं को कोई ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है।
जय हिन्द
लेखक : अरविंद सिंह
निदेशक, करियर स्ट्रेटजिस्ट्स आईएएस , दिल्ली