जोखिम लेने से न घबराएं, डर के आगे जीत है : रविकांत
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Don’t be afraid to take risks, there is victory over fear: Ravikant

BPSC परीक्षा में चयनित रविकांत एक बेहतरीन वैज्ञानिक (Scientist) के तौर पर देश के काम आ सकते थे क्योंकि इन्होंने दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU ) मे पढ़ते हुए बायोडीजल में शोध (research) कर यह पता लगाया कि बायोडीजल का प्रयोग CI इंजन में भी किया जा सकता है। लेकिन पारिवारिक ज़िम्मेदारी ने इन्हें सरकारी नौकरियों के अगल अलग पदों से होते हुए  190वीं रैंक के साथ BPSC की रिवेन्यू ऑफीसर (C O) के पद तक पहुंचा दिया है। हो सकता है अगले 6 महीनों में इन्हें SDM/DSP और अगले एक दो साल में UPSC से चयनित किसी IAS/IPS/IRS के पद पर देख सकते हैं । ऐसा इसलिए कह रहे कि इन्होंने 65वीं BPSC की मुख्य परीक्षा दी है जबकि 66वीं BPSC की प्रारंभिक परीक्षा पास कर लगातार प्रयत्नशील हैं। ये एक वर्ष मेरे छात्र रहे है। 

रविकांत दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) से M Tech पूरी करने के बाद सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने का निश्चय किया और इस सिलसिले में इसी यूनिवर्सिटी के एक असिस्टेंट प्रोफेसर (Ph.D के छात्र) के साथ मुझसे मेरे ऑफिस में मिले। किसी ने इन्हें मेरे बारे में बताया होगा। जब इनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और पारिवारिक पृष्ठभूमि जाना तो बहुत प्रभावित हुआ था और मुझे इसमें एक जुनून (passion) दिखा जो किसी प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने के लिए बहुत जरूरी होता है।
वह ये JEE की परीक्षा उत्तीर्ण कर NIT भोपाल से B.Tech करने और उसके बाद GATE में अच्छे पर्सेंटाइल स्कोर करने के बाद DTU , दिल्ली में दाखिला लेकर कम से कम दो बार अवश्य राष्ट्रीय स्तर पर साबित कर चुके थे। बातचीत में इन्होंने बताया था कि ये बांका बिहार के रहने वाले है इनके पिताजी का एक किराना का दुकान (General Store) है।
एक मध्यवर्गीय परिवार में शिक्षा के प्रति इतना समर्पण कि पहले बेटा को B.Tech कराए फिर M.Tech करने की उसकी इच्छा भी पूरी करे और उसके बाद सिविल सेवा की तैयारी करने जैसे जोखिम उठाने के लिए हंसी खुशी तैयार हो जाए ऐसे माता पिता को मेरा प्रणाम। वो भी तब जब घर में कोई और कमाने वाला न हो। ऐसे जोखिम भरे निर्णय की तारीफ कोई भी किए बिना नहीं रह सकता। लेकिन कहते है न डर के आगे जीत है। रविकांत ने अपने माता पिता को निराश नहीं होने दिया। परिणाम आप सबके सामने है। इससे अन्य माता पिता को भी सीख अवश्य लेनी चाहिए और शिक्षा जीवन में कितना कुछ बदल सकता है यह इनके सफलता से आंकलन किया जाना चाहिए।
मुझे विश्वास हुआ यह मेघावी छात्र इस परीक्षा की लगभग प्रत्येक कसौटी (parameter) पर खड़ा उतरता है। फिर बातचीत में उन्होंने बताया कि DTU के हॉस्टल डिग्री पूरा करने के बाद खाली करना पड़ेगा तो रहने के लिए एक कमरा किराए पर लेना चाहते हैं। ईश्वर की कृपा से एक झोला किताब और एक चादर (बेडशीट) लेकर बिहार से वर्ष 1993 में दिल्ली आने वाला व्यक्ति के पास आज ऐसे दो–चार फ्लैट है जहां छात्रों को रहने और उनकी सुख सुविधा का ध्यान रख पाता है। संयोग से उस समय साथ वाली अपार्टमेंट के मेरे एक फ्लैट में एक कमरा खाली था रविकांत को दे दिया।
मैं भी तो दिल्ली IAS बनने के सपना संजोए दिल्ली आया था। परिश्रम मेरे वश में था इसलिए वो सब किया जो मैं कर सकता था लेकिन जो मेरे हाथ में नहीं था वो थी मेरी क़िस्मत । जिसने उस वक्त साथ नही दिया या हो सकता है नियति में मुझे IAS बनना नही IAS बनाने का काम देना ही तय कर रखा हो। लेकिन IAS बनने का सपना मेरा पहला इश्क था और पहला इश्क कभी भुलाया नही जा सकता। यही कारण है कि बिहार से जब कोई छात्र दिल्ली आकर इस परीक्षा की तैयारी का प्रयोजन बताता है और यदि उसमें मुझे उसमें इस परीक्षा के लायक क्षमता (potential) दिखता है तो मैं उसमें मैं अपने आपको देखने लग जाता हूं। लगता है जैसे यह बन जाएगा/जाएगी तो मेरा सपना पूरा होगा। फिर मैं उसके साथ जी जान से जुड़ जाता हूं।
रविकांत अपनी तैयारी शुरु कर चुके थे लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि लड़का अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारी को समझते हुए इन्होंने अन्य परिक्षाओं में भाग लेना शुरू किया जिससे जल्दी से जल्दी अपने परिवार को आर्थिक मदद की जा सके। इसी क्रम में इनका रेलवे में चयन हो गया। इससे पहले की ये रेलवे में हो गया था जहां से इन्होने अप्रैल 2019 में इस्तीफा दे दिया क्योंकि इनका चयन दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) में हो गया । फिलहाल ये दिल्ली के विकास सदन में ASO के पद पर कार्यरत है। इस समय तक लगभग 18 महीने हो चुके थे इनकी तैयारी तो पुरी हो ही चुका था ये BPSC की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करनेके बाद मुख्य परीक्षा देने वाले थे।चुंकि विकाश सदन रोहिणी से दूर है इसलिए ट्रैवलिंग टाइम को बचाने के लिए इन्होने ऑफिस के आस पास शिफ्ट कर लिया। लेकिन टेलीफोन संपर्क में बने रहें।
आम तौर पर जो बच्चे UPSC की तैयारी करना शुरू करते हैं वे आत्म विश्वास से इतने लबरेज़ होते है कि किसी और नौकरी के लिए फॉर्म भरना भी अपनी तवहीन समझते हैं। लेकिन रविकांत ने सच्चाई को स्वीकार करते हुए एक एक कदम आगे बढ़ा रहे है।
जब मुख्य परीक्षा का रिजल्ट घोषित हुआ तो इन्होंने मुझे अपने सफलता की सूचना दी और हमारी मुलाकात फिर एक बार साक्षात्कार की मॉक इंटरव्यू में अन्य पैनलिस्ट के साथ हुआ। मॉक इंटरव्यू के बाद इनको फीडबैक दिया गया और कुछ बिंदुओं पर आवश्यक सुधार करने की सलाह दी। तीन चार दिन बाद ही इनका इंटरव्यू था तो दिल्ली से पटना जाने के पहले एक बार फिर फोन किया आशिर्वाद और साक्षात्कार के दौरान कुछ आवश्यक सावधानियां रखने के साथ शुभकामनाएं दी।
साक्षात्कार के दिन शाम को फोन पर साक्षात्कार का पूरा विवरण सुनाया तो मेने कहा था कि आपको 90 नंबर के आसपास मिल जाएंगे। संयोग देखिए इनको साक्षात्कार में 90 अंक ही मिले है।
उम्मीद है ये इनका अंतिम पड़ाव न होगा बल्कि इनका आनेवाला कल इससे बहुत बेहतर होगा। मेरी शुभाकामनाएं सहयोग और आशिर्वाद हमेशा इनके साथ रहेगा। ईश्वर ऐसे पुत्र सभी को दे जो अपने माता पिता को कभी निराश न करें।
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