ज्वलंत सवाल : युवाओं में बढ़ते हुए नशा सेवन के लिए जिम्मेवार कौन ?
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नशा क्या है ?

नशा एक बहुत व्यापक शब्द है जिसे सकारात्मक सोच और नकारात्मकता की आगोश में न दिखने वाली एक बहुत बारीक लकीर होती है। यह कब इस पार से उस पार हो जाए अधिकांश लोगों को एहसास ही नहीं होता है। लेकिन यहां नशा सेवन का जो तात्पर्य ऐसी अवांछित आदतों की सूची से है, जिसके परिणाम न केवल व्यक्ति विशेष को, बल्कि उसके परिवार को भी बर्बादी के दहलीज तक ले जाते हैं।

व्यक्ति और परिवार एकात्मक नही होते बल्कि समाज का एक हिस्सा होते हैं।अतः किसी परिवार की बदहाली और कलह का असर समाज पर भी पड़ता है। आइए, इन आदतों की पूर्वावस्था से लेकर इसके परिणति तक विस्तार से चर्चा करते हैं।

नशा सेवन क्या है ?

साधारण भाषा में अगर कहें तो, ऐसी कोई भी आदत जिसके बिना मनुष्य बेचैन होने लगता है । अगर इसके बिना वह लंबे समय तक न रह पाए, उसका मन व्यग्र हो जाए नशा का ही प्रकार है। यह कोई कार्य हो सकता है, कुछ खाने पीने की चीज हो सकता है या देखने की बात भी हो सकती है। एक नियमित अंतराल पर उस कार्य को न करने से मन विचलित होने लगता है। एक अधूरेपन का एहसास होता रहता है। इनमें से कई आदतें स्वस्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। जेसे तम्बाकू का सेवन, सिगरेट, बीड़ी, हुक्का, शराब पीने की आदत। इन सभी चीजों का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लीवर, किडनी और हृदय जेसे मतवपूर्ण अंग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दूषित हो जाते हैं। तंबाकू, गुटका और पान मसाला के लगातार सेवन से मुंह, दांत, गला और जीभ के खराब होने के साथ साथ कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के लोग शिकार होते हैं।

“अति सर्वत्र वर्जयेत” अर्थात ज्यादा किसी भी चीज का उपभोग स्वास्थ्यकर कभी नहीं होता। यहां तक कि अत्यधिक चाय कॉफी का सेवन भी स्वाथ्य संबधी समस्याओं को जन्म देता है । इसलिए यह भी एक व्यसन ही है।

एक समय था जब लोग पहली बार एक नई घड़ी पहनते थे तो बार बार समय देखने की लत लग जाता था। आज वही व्यसन के शिकार करोड़ों लोग हो चुके हैं। कई लोगों को यह एहसास होता रहता है कि जेसे उनका ही फोन बज रहा है ऐसे लोग बार बार अपनी फोन जेब से निकाल कर देखते हैं। कुछ लोग बिना किसी नोटिफिकेशन के ही थोड़ी थोड़ी देर के बाद वाट्सअप, मेल इत्यादि चेक करते रहते है।

आजकल एक और लत अधिकांश लोगों को लग गई है, कोई व्यक्ति किसी भी सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट करे तो, यह देखने की व्यग्रता कि कितने लोग पोस्ट को लाइक कर रहे है? कितने लोग कमेंट कर रहे हैं। यह देखने के लिए बार बार मोबाइल को चेक करना भी एक व्यसन ही है। इसमें समय और ऊर्जा दोनों की बर्बादी होती है। कई बार अपने सहपाठी और रिश्तेदारों से कमेंट और लाइक्स की प्रतिस्पर्धा होने लगाता है। अपने प्रतिस्पर्धी से कम लाइक्स आने पर अवसाद ग्रस्त होते है

यह मानसिकता आम लोगों से लेकर बड़ी हस्तियों तक है। किसी की लोकप्रियता का पैमाना उसके फॉलोअर्स की संख्या से मापने का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है। अपने फॉलोअर्स बढ़ने के लिए लोग प्रमोशन तो करते ही है कई बार उलूल जुलूल हरकतें भी करते हैं जिससे उनका पहुंच को विस्तार दिया जा सके। कई बार किसी विषय पर उटपटांग बयान देकर अपने को चर्चा में बनाएं रखने के लिए फिल्मी दुनिया के लोग हथकंडे अपनाते हैं। चुंकि अधिकांश युवा इनसे प्रभावित होते हैं इसलिए ये सब लोग यथा सम्भव अपनी संसाधनों का उपयोग कर खबरों में रहने के लिए तथा अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया पर शॉर्ट विडियो टिकटोक टाइप , मेसेज इत्यादि पोस्ट करते है। बाजारीकरण के इस दौर में यह एक आमदनी का जरिया भी बन गया है।

विभिन्न स्रोतों से जानकारी के आधार पर यह ज्ञात हुआ कि कि क्रिस्टियानो रोनाल्डो को इंस्टाग्राम पर एक कमर्शियल पोस्ट के लिए 11.9 करोड रूपये मिलते हैं। भारतीय सितारों की बात करें तो विराट कोहली को एक पोस्ट के लिए 5 करोड रूपए जबकि प्रियंका चोपड़ा को एक पोस्ट के लिए 3करोड रुपए मिलते हैं। अर्थात लाखों लोगों का व्यसन इनके लिए कमाई का जरिया है।

इन सभी बातों से यह सप्ष्ट हैं कि कोई भी आदत सभी के लिए बुरी हो या सभी के लिए अच्छा हो यह कहना मुश्किल है। शराब पीना किसी के लिए बुरी आदत है तो कई जगह यह संस्कृति का हिस्सा है। ऐसे करोड़ो लोग मिल जाएंगे जिनकी मृत्यु अत्यधिक शराब के सेवन फेफड़े के खराब होने से हुई है। जबकि यूरोपियन देशों में 16 वर्ष की उम्र से ही शराब का सेवन करने वाले 100 वर्ष से अधिक आयु तक बिना किसी बीमारी के जीवित रहने वाले लोगों के उदाहरण भी है।

भारत में भी ऐसे लोग है जो लगातार कई वर्षों सिगरेट पीते हैं फिर भी 90 वर्ष से अधिक आयु तक उनको सांस संबंधी कोई समस्या नहीं है। इसका अर्थ आप यह निकाल सकते हैं कि किसी भी चीज का सेवन अगर जीवन में उचित मात्रा में किया जाए तो, वह उतनी हानिकारक नहीं होता है। हानिकारक प्रभाव तब होता है जब उसकी मात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। तब यह एक ऐसे व्यसन में परिवर्तित हो जाता है जिसके बाद इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।

शराब पीने की आदत बिहार, उत्तरप्रदेश जेसे राजयों में बहुत बुरा माना जाता है जबकि पंजाब, हरियाणा, दक्षिण भारतीय राज्यों में इसको खान पान का एक हिस्सा के रूप में देखा जाता है। रिश्तेदारों को शराब, बीड़ी, सिगरेट ऑफर करना एक आम बात है। पहाड़ी इलाकों में रहते वाले लोगों के लिए शराब का सेवन एक आम बात है।

प्रमाणिक जानकारी के अनुसार, 20 मिली प्रतिदिन वाइन पीना स्वस्थ्य के लिए लाभकर होता है। एकओर यह शरीर के बहुत से विषैले पदार्थ को नष्ट करता है, वही दूसरी ओर शरीर के मेटाबॉलिज्म क्रियाओं को तेज करने तथा भोजन को पचाने में मदद करता है।

इसका अर्थ यह है कि शराब व्यक्ति विशेष और भगौलिक क्षेत्रों के आधार पर किसी के वरदान साबित हो सकता है तो किसी के लिए अभिशाप। हम प्राय अपने आसपास के गांवो या शहरों में ऐसे लोग देखते है। अधिकतर लोग व्यसन के शिकार हैं। बहुत कम ही ऐसे लोग होंगे जो किसी न किसी व्यसन के शिकार नही होंगे। कुछ ऐसे लोग आपके जीवन में होंगे, जिनसे आप दिन में कई बार घंटों फोन पर बात करते होंगे जिसमें अधिकतर गैरजरूरी बातें होती होगी। लेकिन यह जानते हुए भी अनायास ही बार बार आपकी अंगुलियों से वह नंबर डॉयल होता है। यह सब भी व्यसन के ही लक्षण है।

किसी के फोटो को बार बार देखना , उसकी तस्वीर से अपने कमरे को भर देना एक प्रकार का व्यसन है जो युवावस्था में अधिकतर लडके लड़कियों में होता है। लेकिन इन सब व्यसनों का उतना असर जीवन में नहीं पढ़ता है। बढ़ते उम्र के साथ यह कम होने लगाता है। इसमें कुछ तो नेचुरल है लेकिन कुछ समाजिक परिवेश में समाजस्य की कमी के कारण होता है।

आदि काल से ही हम भारतीय अपने बच्चो से एक दूरी बनाकर रखते हैं। शायद हमे इस बात का डर होता है कि कही बेटा या बेटी से हम ज्यादा घुल मिलकर रहेंगे तो इनपर हमारा कंट्रोल खत्म हो जाएगा। करीब 30-35 वर्ष पहले मेने एक 90-92 वर्ष के बुजुर्ग से बात करने पर उन्होंने बताया था कि उनके युवावस्था में कोई अपने बच्चें को चाहते हुए भी इसलिए गोद नही उठा पाता था कि परिवार के लोग यह न कहने लग जाए कि ये सिर्फ अपने परिवार का ध्यान रखते हैं। संयुक्त परिवार में चलन था कि लोग अपने बीबी बच्चों से सार्वजनिक तौर पर बात नहीं करते थे। सब एक दुसरे का ख्याल रखते थे। परिवार के मुखिया की निर्देशन में सबका एक समान ख्याल रखना सामूहिक ज़िम्मेदारी होती थी।

उस समय संयुक्त परिवार हुआ करता था लेकिन अब एकल परिवार का चलन तेजी से बढ़ा है। पहले की अपेक्षा लोगों के बच्चे भी औसतन दो या तीन होते हैं इसलिए बच्चों का उनके माता पिता से प्रत्यक्ष संवाद बढ़ा है।

हालांकि गांव की अपेक्षा शहरों में बच्चे अपने माता पिता के साथ ज्यादा मुखर होकर बोलने लगे हैं। अब लोगअपने बच्चों से घुलने मिलने लगे हैं। लेकिन अभी भी उन सभी मुद्दों पर चर्चा करने से हम बचते हैं जिसकी जरुरत बच्चो के बढ़ते उम्र के साथ समय समय पर करना चाहिए। इसका परिणाम यह होता है कुछ भ्रांतियों के साथ उनको अधूरी जानकारी अपने सहपाठियों या अन्य स्रोतों से प्राप्त होती है। इसके साथ ही हम इतने ज्यादा अपने बच्चों पर संदेह करने लगते हैं कि बच्चा अपनी बात माता पिता से धीरे धीरे शेयर करना बन्द कर देता है।

याद कीजिए जब आपका बच्चा छोटा था तो शाम को आपके कार्य स्थल से वापस आते ही आपसे आकर सारी बातें दिनभर की शेयर करता था चाहें वह स्कूल की हो या दोस्तों की बाते । आप बहुत ध्यान से उसकी बात सुनते थे आपको अच्छा लगता था धीरे धीरे आपने उसकी बातों में रुचि लेना कम कर दिया तो उसने बताना बंद कर दिया। जब घर के लोगों ने बात करना बंद कर दिया तो बाहर के वह स्कूल कॉलेज के दोस्त लोगों से बात करना उसने शुरु किया । आप उस पर भी जासूसी करने लगे । मसलन किसका फोन था ? लड़का था या लडकी। इतने देर से क्या बात कर रहे थे ? उसका बार बार फोन क्यों आता है ? चलिए, पूछ तो लिया, लेकिन उसके किसी भी जवाब से आप संतुष्ट तो कभी नहीं होते। आपको यह लगाता रहता कि कहीं कुछ छिपा तो नही रहा/रही हैं। बार बार टोका टोकी से परेशान आपका बच्चा ऑनलाइन चैट शुरु करता है और इसी क्रम में सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ऐसे लोगो के संपर्क में भी आ जाता/जाती है जिसे वह जानता/जानती तक नहीं।

एक वर्चुअल दुनिया में वो सब कुछ वह करना चाहता/चाहती है जो वास्तविकता से कोसों दूर है। इस वर्चुअल दुनिया में नशे के व्यापारी से लेकर देह व्यापार के लोग भी बहुत सक्रिय हैं जो नए ग्राहक की तलाश में रहते हैं। उनके गिरफ्त में आ जाना संभव है। इसके दूरगामी परिणाम होते हैं।

बाल मन में प्रत्येक व्यक्ति के मन में किसी चीज को छुने, चखने, देखने की ललक होती है वह उसके परिणाम से बेफिक्र होकर उसे छूना, चखना या देखना चाहता है। एक वर्ष आ अबोध बालक भी दीपक को पकड़ने की कोशिश में हाथ जला बैठता है उसे यह नहीं मालूम होता कि आग में हाथ डालने से हाथ जल जाएगा । कई बार सीसे की गोली जैसी चीज चखने के क्रम में गले में फसा लेता है। जब उसको इसके परिणाम समझ आने लगाता है तो वह ऐसा करना नही चहता।

अब सवाल यह कि संभावित परिणाम की जानकारी कैसे हो ?

एक तरीका है कि समय रहते हम किसी कार्य विषेश के परीणाम के बारे में सटीक प्रमाण और तर्क से जानकारी को साझा करें। दुसरा कि परिणाम भुगत कर व्यक्ति स्वयं अनुभव लें। जब पहला तरीका समय से पूर्व सही तरह से कार्यरूप में परिणत नहीं होता तो स्वाभाविक रूप से दुसरे तरीके की ओर रुझान होगा। इसी क्रम में, कभी कभी यह कंट्रोल से बाहर हो जाता है। मान लीजिए, एक बच्चा जिज्ञासा से या अपने दोस्तों के दबाव में आकर किसी दिन सिगरेट या शराब पी ली। उसने आकर घर पर बताया या आपको उसके आव भाव से पता चला तो आप क्या करेंगे?

हम में से अधिकतर लोग बच्चों के कृत्य पर आग बबूला होकर उसे डांटने या पीटने की कोशिश करेंगे । दुःख का प्रदर्शन ऐसे करेंगे जैसे सबकुछ खत्म हो गया हो। फिर उसके आचार व्यवहार और अपने परवरिस के लिए पति पत्नी एक दुसरे पर दोषारोपण करने लगते हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे के आने जाने पर पाबंदी लगाने की कोशिश करेंगे । अक्सर लोग उसका मोबाइल, लैपटॉप इत्यादि छीन लेते हैं। आपका व्यंग बाण उसमें नफरत की चिनगारी पैदा करने लगता है और बच्चा अकेले रहने लगाता है, हमसे बात करना कम कर देता है। हमें लगता है कि हम बच्चें को सुधार रहे हैं जबकि उसके बिगड़ने की पहली दस्तक उसी दिन से शुरु होता है। अब बच्चा वो सारे कार्य करेगा लेकिन आपसे बताएगा नहीं। क्योंकि बताने का परीणाम वह देख चुका होता है।

इसके विपरित हम यह जानने के बाद कि बच्चें ने शराब या सिगरेट का सेवन किया है। हम उसे प्यार से अपने पास बैठाएं और उसके अनुभव शेयर करें। फिर उसे प्यार से समझाएं कि तुमने जो जिज्ञासा बस किया वह कोई अपराध नहीं है ऐसा इस उम्र में अक्सर होता है अगर आपका इस उम्र का कोई अनुभव हो तो शेयर करें और फिर प्यार से समझाएं कि इस उम्र में इनका सेवन कानूनी रूप से गलत है। तुम ऐसा करो कि आगे अभी इससे दूर रहो और जब आपकी आयु 21 वर्ष की हो जाएगी तब आप स्वयं निर्णय लेना कि इसका सेवन करना चाहिए या नहीं। उसके अनुसार करना। इससे बच्चें का अपराधबोध तो दूर होगा ही साथ में स्वविवेक के निर्णय को सर्वोपरि रखकर जो उसके आत्म विश्वास में वृद्धि भी होगी। साथ ही आपके ऊपर उसका भरोसा भी बढ़ेगा।

उपरोक्त तथ्य को अगर ठीक से समझा जाए तो यह कहा जा सकता है कि युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के लिए हम सब लोग ज़िम्मेदार है । सभी को अपने कर्तव्य का निर्वहन इमानदारी से करना होगा। सिर्फ शराब की दुकानें बंद कराने से नही बल्कि उसके अत्यधिक सेवन से होनेवाले दुष्प्रभाव के बारे में शिक्षित कर ज्यादा कारगर तरीके से समाज को नई दिशा दी जा सकती है।

WHO की रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब से करीब 6,000 लोगों की मौत प्रतिदिन पूरी दुनिया में होती है। इनमें से 28% मौतें शराब पीने के बाद चोटों के कारण होती हैं, जैसे कि ट्रैफिक क्रैश, खुदकुशी या मारपीट से होती है जबकि 21% लोंगो को पाचन सम्बन्धी रोगों के कारण मृत्यु हो जाती है 19% हृदय रोगों के कारण, और शेष संक्रामक रोगों, कैंसर, मानसिक विकार और अन्य स्वास्थ्य स्थितियां के कारण होती है। लगभग एक लाख मौते भारत में प्रति वर्ष अल्कोहल के प्रयोग करने से अप्रत्यक्ष रूप से होती है। इसके अतिरिक्त 30000 मौतें शराब पीने वाले लोगों को कैंसर होने से होती है। जिसे बहुत पहले WHO द्वारा ग्रुप 1 कार्सिनोजेन (carcinogen) घोषित किया गया था। हालांकि, लीवर सिरोसिस (Liver cirrhosis), शराब पीने वालों में सबसे ज्यादा होती है जिससे करीब 14 लाख मौतें प्रतिवर्ष होती है।
यह आंकड़े तो सिर्फ शराब का सेवन करने वाले लोंगो की है जबकि अन्य मादक पदार्थों जैसे अफीम के विभिन्न रूप में उपलब्ध चरस, गांजा, भांग, हैरोइन (स्मैक, ब्राउन शुगर मारफीन, पैथेडीन) आदि के सेवन से हजारो मौते प्रति वर्ष होती है। इन पदार्थों में सर्वाधिक व्यसन एल.एस.डी. (LSD) का किया जाता है। यह एक कृत्रिम रासायनिक पदार्थ है। यह नशीला पदार्थ इतना शक्तिशाली है कि इसकी एक तोले से ही तीन लाख डोज बनाये जाते हैं। नमक के दाने से भी कम इसकी मात्रा मनुष्य में कई मनोरोगमय प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। इस पदार्थ के सेवन के 8-10 घण्टे तक नींद आना लगभग असम्भव है। एल.एस.डी. लेने के पश्चात गांजे के समान ही फ्लैशबैक की घटना प्रारम्भ हो जाती है, व्यक्ति हिंसक होकर अपराध भी कर बैठता है तथा यह पूर्ण भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं। चिकित्सकों के द्वारा इन पदार्थों के सेवन की सलाह कभी नहीं दी जाती, ऐसे पदार्थों का सेवन बन्द कर देने पर अतिभय, अवसाद, स्थायी मानसिक असंयम पैदा हो जाता है। ताम्रकूटी पदार्थों में सिगरेट, बीड़ी, सिगार, चुरूट, नास (Snuff) तम्बाकू सम्मिलित हैं। तम्बाकू की खेती की जाती है जिसके पत्ते चौड़े और कड़वे होते हैं। निकोटीन पदार्थों का कोई चिकित्कीय उपयोग नहीं होता परन्तु शारीरिक निर्भरता का जोखिम रहता हैं। यह व्यसनी में शिथिलन पैदा कर केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को उत्तेजित करती है तथा उबाऊपन को दूर करती है। तम्बाकू का अधिक सेवन दिल की बीमारी, फैंफड़े के कैंसर, श्वास नली जैसे रोग उत्पन्न करता है। पिछले दो वर्षों में 2300 से ज्यादा लोगों की मृत्यु दवाइयों के ओवरडोज के कारण हुई है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार,पिछले दशक में भारत में नशीली दवाओं के उपयोग में 30% की वृद्धि हुई है।

किसी भी प्रकार के संभावित व्यसन से युवा पीढ़ी को बचाने के लिए समय पूर्व उसे शिक्षित करना माता पिता, परिवार, समाज और सरकारों का सामूहिक दायित्व है। यह एक ऐसी लत होती है जो एक ऐसी काल्पनिक दुनिया के झरोखे में ताना बाना बुना हुआ होता है जिसमें एक बार गोता लगाने पर निकाला तो जा सकता है परंतु बार बार गोता लगाने वालों का डूबना तय माना जाता है।

 

लेखक : अरविंद सिंह

Director, Career Strategists IAS

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