आज कल देश में कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों की चर्चा अक्सर होती है। किसी को विकाश का मसीहा की पदवी से नवाजा जा रहा है। तो किसी को युगपुरुष या विकाश पुरुष की संज्ञा से विभूषित किया जा रहा है । क्या इससे ही समावेशी विकास की अवधारणा निकलती है। विगत कुछ वर्षों में बिहार सरकार बाहरी-भीतरी प्रतिरोधों के बावजूद विकाश को निरंतर कार्यरूप दे रही है। इसके लिए हाल ही में WTO सहित कई देशों के प्रतिनिधियों ने भी बिहार के विकाश मॉडल की प्रसंशा की है और इस मॉडल को अनुकरणीय बताया है। प्रतिद्वंदी देश पाकिस्तान के उच्चायुक्त सलमान बशीर ने कहा कि बिहार का विकास मॉडल बड़ा ही प्रभावकारी है। उन्होंने कहा कि बिहार में सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर जो काम हुए हैं, उसमें पाकिस्तान की काफी दिलचस्पी है। हम बिहार के साथ अपने रिश्ते को विकसित करना चाहते हैं। जिन राज्यों में राजनीति के अपराधीकरण के कारण विकास बाधित है उन राज्यों के लिए बिहार मॉडल अनुकरणीय है। एक निष्पक्ष और बाजार उन्मुख कृषि व्यापार प्रणाली स्थापित करने के लिए और कृषि क्षेत्र पर आधारित अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा देने का कार्य नितीश कुमार ने बखूबी किया है। समर्थन और संरक्षण के आधार पर जो सुधारों की प्रक्रिया उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में शुरू की थी उसके परिणाम अब दिखने लगे है । राज्य सरकार के अधिकारियों, किसानों आयोजकों, निर्यातकों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर बाजार पहुंच, घरेलू समर्थन और निर्यात सब्सिडी के क्षेत्रों में जो कार्य हो रहे हैं उससे विकाश कि गति को नयी दिशा मिलेगी । सरकार का प्रयास कृषि को संगठित और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए है। नेपाल के तत्कालीन प्रधान मंत्री डा.बाबू राम भट्टाराई ने भी कहा कि जितना कम समय में बिहार में समाज के हर क्षेत्र में जो चमत्कारिक परिवर्तन हुए है, वह इस बात का सबूत है कि बिहार न सिर्फ अन्य प्रदेशों के लिए बल्कि नेपाल के लिए भी समावेशी विकास का रोल मॉडल बन सकता है। इसलिए तीव्र विकास की तकनीक भी हम बिहार से सीख रहे हैं।
नितीश कुमार के शासन के पहले बिहार जातिवाद और राजनितिक आतंकवाद कि ऐसी चक्रव्यूह में फँस चूका था , जहा अंधेरगर्दी के अलावा कुछ और नहीं था। युवा शिक्षा से पहले अपराध कि दुनिया से रुबरु होने लगे थे । विकाश तो दूर सामाजिक समरसता ही दूषित हो गया था । उस झंझावात से निकाल कर विकास व सुशासन की पटरी पर लाने और देश विदेश से सराहना पाने के पीछे कोई मॉडल तो अवश्य ही होगा। इसे कुछ लोग नीतीश मॉडल भी कहते हैं। हालांकि खुद नीतीश कुमार कहते हैं: हमारे रास्ते में काफी कठिनाइयां हैं और अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है। लेकिन अंग्रेजी में एक कहावत है वेल बिगिन इज हाफ डन । केंद्र सरकार द्वारा 12000 करोड़ के विशेष पैकेज से राज्य में विकाश का एक नया अध्याय शुरू होगा । मुख्यमंत्री के द्वारा विशेष राज्य का मांग किया जा रहा है। विशेष राज्य का दर्जा मिल जाने पर बिहार की जनता के साथ वास्तविक न्याय होगा। न्याय के साथ विकास नीतीश सरकार का मुख्य नारा रहा है। इस नारे से समावेशी विकास की अवधारणा निकलती है। इसे राज्य सरकार तमाम बाहरी और भीतरी प्रतिरोधों,कमियों व कठिनाइयों के बावजूद कार्यरूप दे रही है। जिन राज्यों में राजनीति के अपराधीकरण के कारण विकास बाधित है उन राज्यों के लिए बिहार मॉडल अनुकरणीय है। चुनाव में जातीय वोट बैंक ने भी बिहार सहित कई राज्यों के विकास में बाधा पहुंचाई है। लेकिन अब बिहार सहित अन्य राज्यों में भी विकाश को महत्व दिया जाने लगा है। वैसे नितीश कुमार एक अकेले ऐसे मुख्यमंत्री नहीं है जिनकी चर्चा सुशाशन एवं विकाश के लिए हो रहा हो । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की चर्चा भी विकाश के लिए एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ।
हाल ही में व्यावसायिक मंचों पर भी नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकाश मॉडल को देश में लागु करने की अपनी मंशा जताई है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चर्चा भी उनके सुशाशन के लिए किया जाता है । छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमण सिंह भी काफी अच्छा कर रहे है । इन सभी राज्यों में विकाश तेजी से हुआ है । मध्य प्रदेश की जीडीपी का ग्रोथ तो पुरे देश में सबसे अधिक है । नेशनल जीडीपी के दुगने से भी ज्यादा । फिर भी कानून व्यवस्था में तेजी से सुधार लाने और आपराधिक मामलों को त्वरित व सामान्य अदालतों के जरिए निपटारा कर पिछले सात साल में 74 हजार 464 दोषियों को सजा दिलवाने जैसे कार्यों के कारण नितीश थोड़ा इनसे आगे नजर आते है । नीतीश सरकार ने सजायाफ्ताओं में करीब एक दर्जन ऐसे भी हैं जो विधायक व सांसद रह चुके हैं। इससे लोगों का न्याय और सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है । अब कानून तोड़ने वालों में कानून का भय है। हालांकि अब भी आदर्श स्थिति नहीं है, पर काफी सुधार हुआ है। इस कारण भी विकास का माहौल बना है। विकास हो भी रहे हैं। जहाँ पहले कानून व्यवस्था के लचर स्थिति के कारण उद्यमियों तथा शिक्षाविदों का लगभग पलायन हो चूका था, आज इनका फिर से उत्कर्ष होने लगा है ।
राज्य में राजनीतिक स्थिरता होने के कारण सरकार को काम करने की फुर्सत है। राज्य सरकार ने आधारभूत संरचना, कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों सहित लगभग सभी क्षेत्रों में विकास व कल्याण सम्बन्धी कार्य अपने ढंग से किया है। बिहार के कामों की अन्य लोगों के साथ-साथ केंद्र सरकार ने भी समय- समय पर सराहना की है। समावेसिक और संतुलित विकाश की परिभाषा इसी राज्य से फलित हुई है जिसका अनुसरण कर केंद्र व कई राज्यों ने उनमें से कुछ कामों को अपनाया भी है। नीतीश कुमार ने योजना बजट का आधा हिस्सा आधारभूत संरचना के निर्माण में और बाकी आधा सामाजिक क्षेत्रों में खर्च करने का प्रावधान किया है। कृषि कैबिनेट बनाने वाला बिहार देश का संभवत: पहला राज्य है। परन्तु सिर्फ कृषि के जरिये लम्बी छलांग लगाना मुश्किल कार्य है ।
सम्यक मानव विकास के क्षेत्र में भी ऐसे ही काम हो रहे हैं। समाज के हर तबके के लोगों को सरकार की ओर से नकद या वस्तु के रूप में आज कुछ न कुछ मिल रहा है। यह जनता को प्रत्यक्ष तौर पर शासन से जोड़ने में कारगर साबित हुआ है । महादलित, अल्पसंख्यक, महिलाओं और समाज के अन्य वंचित लोगों के लिए विशेष योजनाएं चल रही हैं , जिससे उनके सामाजिक और आर्थिक विकाश का लाभ उन्हें भी मिल रहा है। समाजिक समरसता के दृष्टीकोण से यह एक सकारात्मक प्रयास है । कोशिश यह होनी चाहिए कि न तो कहीं एक तरफ अविकास की गहरी खाई रहे और न ही दूसरी ओर विकास के टापू वाली व्यवस्था रहे। यही सब बिहार मॉडल है।
यह कहा जा सकता है कि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य, शिक्षा और आधारभूत संरचना पर विशेष जोर दिया है। इन प्रयासों के कारण विकास दर के मामले में बिहार देश में पहले या दूसरे स्थान पर इन दिनों रह रहा है। एक ऐसा राज्य जहां सात साल पहले तक कार्य संस्कृति का भारी अभाव था, वहां इतनी उपलब्धि हासिल कर लेना भी काफी महत्त्वपूर्ण है। हां, सरकारी भ्रष्टाचार व अपराध को कम करने के लिए नीतीश सरकार को थोड़ी और मेहनत करनी होगी। अभी छोटे उद्योग जरूर लग रहे हैं पर बड़े उद्योगों के मामले में बिहार अब भी विकास का रेगिस्तान बना हुआ है। शिक्षा के स्तर को सुधारना होगा। अभी भी बेहतर शिक्षा के लिए बिहार से लाखों छात्र प्रतिवर्ष दिल्ली ,कोटा , इलाहाबाद ,अलीगढ, पुणे जैसे शहरों की ओर जाते है जिससे बिहार के आय का एक बड़ा हिस्सा इन राज्यों में चला जाता है । अगर शिक्षा के क्षेत्र में उन्नत विकाश हो ,तो विकाश की गति को पंख लग सकते है। यह एक चुनौती है । देखें नितीश कुमार इससे किस प्रकार निपट पाते है ।