रूस-यूक्रेन विवाद से यही समझ में आता है कि अगर पाकिस्तान या चीन भारत पर हमला करता है तो उस स्तिथि में भारत का साथ देने ना रूस, ना अमेरिका, ना नाटो आएगा। इसलिए भारत का सैन्य शक्ति, टेक्नोलॉजी और उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना 100% जरूरी है। अगर भारत सैन्य शक्ति में आत्मनिर्भर बनेगा तभी आर्थिक शक्ति भी बन पाएगा। भय बिन होत ना प्रीती।
यूक्रेन में यूरेनियम का अकूत भंडार है। कभी वो विश्व का तीसरा सबसे बड़ा परमाणु शक्ति माना जाता था। अपने ही भाई (रूस) से दुश्मनी, UK, अमेरिका और नाटो से दोस्ती करने के चक्कर में इसने अपने परमाणु शक्ति का 1994 में त्याग कर दिया था।
आज अगर यूक्रेन अपनी परमाणु शक्ति का त्याग नहीं करता तो रूस अभी हमला करने की हिम्मत नहीं करता, उसे नाटो से मदद माँगने और गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। यूक्रेन यूरोप में क्षेत्र के हिसाब से दूसरा या तीसरा सबसे बड़ा देश है। कृषि और उद्योग धंधे में भी बहुत संपन्न है। अगर वहाँ का नागरिक और सरकार अपने भाई (रूस) के साथ वफादारी और साफ नियत के साथ अलग देश होकर भी रहता तो आज उसका नाम विश्व की टॉप शक्ति में गिना जाता।
आज यूक्रेन का हाल ये है कि वहाँ की जनता में राष्ट्रवाद की भावना का लोप हो गया है। सब नागरिक अपना अपना फायदा देख रहा है। सब आरामफरोश हो गए हैं। भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा हुआ है। सब डॉलर की चाह रख रहे हैं। जिसको जिधर मन हो रहा है उस यूरोपियन देश में बस जा रहा है। यूक्रेन के राष्ट्रपति को मजबूरन ये घोषण करना पर रहा है कि 18-60 साल का कोई भी व्यक्ति देश छोड़कर नहीं भागेगा। सभी को युद्ध में शामिल होना होगा।
नाटो ने यूक्रेन को बहला-फुसलाकर कमजोर करने और रूस के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए किया। ये तो वाजपेयी जी का शुक्र मनाइए कि उन्होंने तमाम आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद 1998 में भारत के परमाणु शक्ति को आगे बढ़ाया और उसी का परिणाम है कि पाकिस्तान और चीन भारत पर हमला करने और आँख दिखाने से पहले हजार बार सोचते हैं। छोटे छोटे दुश्मन भारत से भय खाते हैं।
जब लेनिन ने 1922 में लगभग 15 देशों को मिलाकर USSR का गठन किया था तो UK और US ने भी इससे प्रेरित होकर 1949 में नाटो का गठन किया था। आज इसके सदस्य देश 30 हैं जिसमें अमेरिका और कनाडा भी है। नाटो ने षडयंत्र के तहत USSR को 15 देशों में तोड़कर रूस को अकेले कर दिया। परंतु इससे भी उसका मन नहीं भरा है और वो रूस को बर्बाद करना चाहता है।
नाटो का एक मुख्य आर्टिकल ये है कि अगर नाटो के किसी भी देश पर हमला होता है तो वो उसके सभी देशों पर हमला माना जायेगा और सभी देश मिलकर उसका जवाब देंगें। नाटो गुटबाजी को बढ़ावा दे रहा है तो बहुत अच्छा है लेकिन जब USSR यही काम कर रहा था तो गलत था।
आज के समय में नाटो का क्रेज इतना बढ़ गया है देश इसके सदस्य बनने के लिए ललायित रहते है जबकि वास्तविकता ये है कि इसका सदस्य बनना अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका और अन्य मुख्य यूरोपियन देश की गुलामी है। आज नाटो का एम्बीशन इतना बढ़ गया है कि वो रूस के बॉर्डर पर उसके जयचंद भाइयों को बहला-फुसलाकर पहुँचना चाहता है और उसके जयचंद भाइयों के जमीन पर ही सैनिक अड्डा बनाकर रूस को हमेशा भय में रखना चाहता है। वो रूस को आर्थिक और सैन्य रूप से कमजोर करके अमेरिका को विश्व का एकमात्र महाशक्ति बनाना चाहता है।
शक्ति संतुलन के लिए विश्व का द्विध्रुवीय, त्रिध्रुवीय या पंचध्रुवीय होना बहुत जरूरी है।
इसलिए विश्व को द्विध्रुवीय बने रहे के लिए रूस के द्वारा अपने जयचंद यूक्रेन भाई पर हमला करना उचित प्रतीत जान पड़ता है। भारत सैन्य महाशक्ति भाजपा और मोदी जी के नेतृत्व में ही बन सकता है।