जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend ) क्या है ?
जब मैं बहुत छोटा था। तब मेरे गाँव में खेत में काम करने दो मजदूर आते थे । उनमे से एक मजदूर का नाम था गुरदयाल , जबकि दुसरे मजदूर का नाम हरदयाल था । हरदयाल के 6 बच्चे थे, उस समय जिनकी उम्र 2 साल से 10 साल के बीच में थी । गुरदयाल के दो बच्चे थे उनमें से एक की उम्र उस समय 12 साल का जबकि दुसरे की उम्र 10 साल का था । हरदयाल सोचता था कि जब उसके सभी बच्चे उसके साथ खेतो में मजदूरी करने लगेगें , तो वे 7 -8 गठरी लेकर घर आयेगे। तो उसकी खूब तरक्की होगी और आने वाले दिनों में वह खूब अमीर हो जायेगा । जबकि गुरदयाल सोचता था कि किसी तरह उसके दोनों बच्चे कुछ अच्छा पढ़ – लिख जाये । जिससे अपने पैरों पर खड़े (self dependent ) हो जायेंगे , उन्हें उसकी तरह दिन भर खेतो में काम करना नहीं पड़ेगा । यह सोचकर उसने अपने बच्चों का नाम स्कूल में लिखवाया ।
मैं पिछले नवम्बर में गाँव गया था । देखा कि आज 30 -32 साल बाद हरदयाल के 6 बच्चे अपनी अलग अलग झोपडी बनाकर रह रहे है। खेतो में उसी प्रकार काम कर रहे है , जिस प्रकार हरदयाल ने सोचा था। हरदयाल का ध्यान उनमे से कोई नहीं रख पाता है, क्योंकि बिल्कुल हरदयाल की तरह उनके भी 6 – 7 बच्चे है। जिनके खर्च में वे खुद ही परेशान रहते है । हरदयाल की दयनीय हालत देखकर मैंने यथासंभव तात्कालिक मदद की और आगे भी मदद करने की मैंने व्यवस्था की है ।
गुरदयाल के बड़ा बेटा ग्रेजुएशन करके जिला मुख्यालय में ऊँचे पद पर कार्यरत है एवं छोटा बेटा सूरत के सरकारी स्कूल में टीचर है । गुरदयाल पक्का घर बनाकर पूरी सामाजिक प्रतिष्ठा के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे है । यह देखकर मुझे यह ध्यान आया कि भारत में भी ठीक उसी प्रकार आज से 30 -32 साल बाद काम करने योग्य लोगो की संख्या अर्थात 15 से 59 वर्ष के बीच की आयु के लोग लगभग 100 करोड़ होंगे ,जो उस समय की आबादी का लगभग 70 % होगा ।
जबकि इसी आयु वर्ग के 45 करोड़ लोग यूरोप में और 27 करोड़ लोग USA में होंगे । तो क्या हम हरदयाल की जैसे यह सोचकर खुश हो कि दुसरे देशों के मुकाबले हमारे देश में ज्यादा काम करने वाले लोग होंगे। तो ज्यादा कार्य दिवस का सृजन होगा । ज्यादा कार्य दिवस का सृजन होने से ज्यादा उत्पाद का निर्माण होगा । ज्यादा आमदनी होगी और हमारा जीडीपी तेजी से बढेगा । जनसँख्या में हुए इस वृद्धि के कारण होने वाली लाभ को जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend ) कहते है ?
अब सवाल यह है कि क्या हम भी हरदयाल के जैसे यह सोचकर खुश हो जाये कि भारत की 70 % संतान अगले 35 साल में काम करने वाले लोगो की फौज में खड़ी होगी और हमारे देश के जीडीपी में तेजी से विकास कर पायेगी । क्या हमें गुरदयाल की तरह जनसँख्या पर नियंत्रण कर युवाओं के गुणवता में विकाश करने की सोचे ? दूसरा पहलू सैद्धांतिक रूप से अच्छा जरुर लगता है, लेकिन इसकी एक सीमा है और यह वास्तविकता से परे है । बच्चा पैदा न करने के लिए किसी को भी बाध्य नहीं किया जा सकता है ? तो क्या उपाय है ?
अगर जनसँख्या का बड़ा भाग हरदयाल के बच्चों की जैसे अकुशल मजदूरों का होगा, तो जीडीपी में यह ग्रोथ कदापि उतना संभव नहीं होगा । जैसे यदि ज्यादा लोग MNREGA जैसे कार्य में लग जाये तो इससे वैसे लोग के लिए रोजगार का सृजन तो होगा परन्तु इससे जीडीपी में उतना वृद्धि नहीं होगा । जितना की इतने ही लोग गुरदयाल के बच्चों की जैसे सर्विस सेक्टर या मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में लगे होते ।
इसका अर्थ यह हुआ की अगर हमें जीडीपी में तेजी से वृद्धि चाहते है और जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend ) लेना चाहते है तो हमें निम्नलिखित कदम उठाने होंगे –
- खेती पर निर्भरता कम करना होगा अर्थात खेती के अतिरिक्त अन्य रोजगार के साधनों का तेजी से सृजन करना होगा ।
- अकुशल कामगारों को ट्रेनिंग देकर कुशल कामगारों में बदलना होगा ।
- गाँव पर जनसँख्या का अतिरिक्त दबाव कम करना होगा अर्थात शहरीकरण करना होगा ।
- असंगठित क्षेत्रो को संगठित करना होगा जिससे उत्पादकता में वृद्धि की जा सके ।
- एम्प्लॉयमेंट सीकर से ज्यादा एम्प्लॉयमेंट जनरेटर होने चाहिए ।
- स्वरोजगार की जगह वेतन भोगी रोजगार को बढ़ाना होगा जिससे कार्य क्षमता का पूरा उपयोग किया जा सके ।