क्या है चाँद पर भविष्य की संभावनाएँ ?
मिल गई आसमाँ से जमीं, मुझको आता नहीं है यकीं,
यूँ ज़माने में होता नहीं, ज़मीं का मिलन आसमाँ से ,
एक दरम्यां है , एक फ़ासला तो है,
लेकिन दरख्ते रहे , तो नामुमकीं नहीं ,
एक मेरी ख़ुशी के लिये जल उठेंगे हज़ारों दिये ….
ये चंद पंक्तिया है जो चाँद पर बसने के लिए सपने देखने वाले हजारों दिलों के जज्बात को बयाँ करते है और वर्तमान पीढ़ी के लिए कौतुहल पैदा करने वाला है । एक आम आदमी के मन में यह प्रश्न उठता है की क्या हम भी चाँद पर बसने के लिए जा सकते है । क्या मेरा भी एक घर चाँद के आशियाने पर होगा ।कई लोग तो यही पर बैठे बैठे चाँद पर जमीं का टुकड़ा खरीदने और बेचने में लगे हुए है । इस प्रश्न का उत्तर देना अभी थोडा कठिन है कि आम आदमी के नजरिये से ये कितना संभव है लेकिन खास लोंगो के लिए तो संभव अवश्य लगता है । तभी तो कई कॉर्पोरेट कंपनियां और सिलिकॉन वैली के आइकॉन अपनी महत्वाकांक्षा को मूर्त रूप देने के लिए होड़ में लगे हुए है । ये लोग वहाँ पर मौजूद खनिज संपदा का दोहन करने के लिए स्ट्रेटेजी बनाने में लगे हुए है । गूगल भी चाँद पर जानेवाली निजी कंपनियों के लिए 300 लाख डॉलर की पुरस्कार राशि की घोषणा की है। लेकिन इस पुरस्कार राशि को वही हक़दार होगा जो कंपनी ऐसी रोबोट बनाये जो चाँद की सतह पर पहुँच कर कम से कम 500 मीटर की दुरी तय करे और उसका हाई डेफिनिशन विडियो 2015 से पहले यहाँ पर के स्टेशन पर प्रेषित करे । दुसरे स्थान पर रहनेवाली कंपनी के लिए 50 लाख डॉलर का इनाम मिलेगा । इसके अतिरिक्त जो कंपनी वहाँ पर 5 किमी तक चलने, अपोलो के पहुंचने के निशान का पता लगाने,पानी ढूंढने और चांद पर इंसान की वहां पर पहले के मौजूदगी के निशान इत्यादि के साक्ष्य ढुढने पर अतिरिक्त इनाम भी दिया जाएगा। इस पुरस्कार को गूगल लूनर एक्स प्राइज का नाम दिया गया है।अमेरिका में नासा के कुछ पूर्व अधिकारीयों ने मिलकर गोल्डन स्पाइक नाम की एक कंपनी बनाया है जो लोगो को चाँद पर ले जाने का सपना साकार करने का दावा कर रही है । कंपनी ने दो आदमियों को ले जाने के लिए खर्च लगभग 14 अरब रूपये तय किया है। गोल्डन स्पाइक कंपनी इस काम में पहले से मौजूद रॉकेट और कैप्सूल तकनीक का इस्तेमाल कर इस काम को पूरा करना चाहता है कंपनी इस कार्यक्रम की शुरूआत इस दशक में ही करेगा। कुछ साल पहले स्पेस एक्स नाम की एक कंपनी ने कुछ सामान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचाने में सफलता प्राप्त की थी ।
इस सफलता से प्रभावित होकर गोल्डन स्पाइक जैसी दूसरी कंपनियों को एक ऐसा टूरिज्म विकसित करने का विचार आया जो लोगों को चांद की यात्रा पर ले जा सके। हालांकि यह प्रस्ताव इतना महंगा है कि लोंगो ने बहुत उत्साह नहीं दिखाया है , इसलिए यह कंपनी दक्षिणी कोरिया, दक्षिण अफ्रीका और जापान जैसे देशों की सरकारों से बातचीत कर रही है । ताकि उनका कोई वैज्ञानिक चांद पर परीक्षण वगैरह करने के लिए दिलचस्पी दिखा सके जिससे उन्हें वह यात्री मिल सके। इस प्रकार की करीब 25 अन्य कंपनियां भी दौड़ में है उनमे से एक मून एक्सप्रेस भी है। जो चांद पर टूरिज्म के जरिये इनकम करने की सोच रही हैं। इस कंपनी को नासा ने अपनी सुविधाओं का इस्तेमाल करने तथा अपने अंतरिक्ष यान की जांच करने की अनुमति दी है। जिससे जानकारी लेकर अपने कार्यक्रम में तेजी ला सके। कंपनी ने मून लैंडर का प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है और उसकी जाँच नासा के प्रयोगशाला में हो रही है ।
अब सवाल यह है कि ये कंपनिया क्या केवल टूरिज्म से पैसा कमाना चाहती है ?
चाँद पर टूरिज्म के अतिरिक्त कई प्रकार के दुर्लभ खनिज पदार्थे है ।ऐसा अनुमान है कि धरती पर मौजूद प्लैटिनम के भंडार से कही ज़्यादा बड़ी मात्रा चांद पर हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ काफी मात्रा में टाईटेनियम भी उपलब्ध है। इन खनिजों पर इनकी नजर है इनका उत्खनन कर ये बड़े पैमाने पर पैसा कमाना चाहती है। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे बिषय है जिनके बारे में जानकारी जिज्ञाषा का विषय है जैसे वह पर गडढ़ों में जमा हुआ पानी में नासा के अनुसार ऐसा हाइड्रोजेन है जो रॉकेट में इंधन का काम कर सकता है । तथा इससे अलग कि गई ऑक्सीजन साँस लेने के लिए उपयोगी होगा। चाँद पर हीलियम-3 की उपलब्ध प्रचुर मात्रा को भविष्य का ईंधन माना जा रहा है।
एक और सवाल है कि आखिर चाँद पर किसका हक है ?
उनका जो जो इनके अनुसन्धान पर बहुत धन खर्च कर चुके है । या वे जो सबसे पहले जाकर कब्ज़ा कर ले और उन पर उपलब्ध संसाधनों का दोहन कर ले। यह सवाल भी बिलकुल उसी तरह है कि कृष्ण पर किसका हक़ था ? देवकी का जिसने जन्म दिया था या यशोदा का जिसने पालन पोषण किया था। जिस प्रकार इस सवाल का जबाब बिलकुल सीधा है कि कृष्ण तो सबके है क्या यशोदा या क्या देवकी। उसी प्रकार कोई अकेला व्यक्ति या देश चाँद की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं कर सकता है ? ऐसा इसलिए है कि 1967 में बाहरी अंतरिक्ष के लिए एक संधि हुई ।इस संधि के अनुसार , चांद पर स्वतंत्र पहुंच, स्वतंत्र प्रयोग और स्वतंत्र दोहन को न सिर्फ़ प्रोत्साहित किया गया है बल्कि शर्त बना दिया गया है।
अत : अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार कोई व्यक्ति, कंपनी या देश चांद के मालिक नहीं हो सकता। लेकिन वह वहां जा सकते हैं और इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इन दोनों कथनों में विरोधाभाष है क्योंकि इनमे संतुलन रख पाना ही एक बड़ा सवाल है। फिलहाल तो अभी तक वहां से कुछ आ नहीं रहा है इसलिए अभी इस मुद्दे पर बहस करना कतई बुद्धिमानी नहीं हो सकती। ये तो बिलकुल उसी कहावत के जैसा होगा कि तालाब में मछली है और बाहर में लोग बंटवारे के लिए लड़ रहे है। ये मिशन इतना खर्चीला है कि अमेरिका जैसे देश भी अपनी हाथ खींचने लगे है। कुछ ही समय पहले स्पेस एक्स फॉल्कन 9 रॉकेट और ड्रेगन कैप्सूल को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए भेजा गया है। उम्मीद है ये दो कदम भावी योजनाओं को मूर्तरूप देने में बड़े मददगार साबित होंगे । भारत हमेशा की तरह दूर खड़ा अभी सिर्फ ये सोच रहा है कि मछली का टेस्ट कैसा होगा ?
अगर हिंदी फ़िल्मों कि रेटिंग की तरह क्रिटिक्स ने चार- पाँच स्टार दिए, तो हम मूवी देखने के लिए जाते है ठीक उसी प्रकार अगर वहाँ कुछ अच्छा रिपोर्ट मिलेगा तो हम भी मछली खाने का कुछ जोगाड़ कर लेगे । वैसे आपकी तसल्ली के लिए यह बता देता हूँ कि इंडिया का मून मिशन 2020 का है और हाल ही में पानी खोजने जैसी उपलब्धि भी हमारे देश ने ही हासिल किया है । तो इतने फिसड्डी भी नहीं कह सकते । भारत सहित चीन और रूस भी अंतरिक्ष में अपने पांव पसारने के लिए कोशिश कर रहे हैं।बेहतर करने की उम्मीद और सुधार की गुंजाइश तो हमेशा ही बनी रहती है ।
मेरे इस आलेख में भी है। फिर भी उम्मीद है कि आपको कुछ सार्थक जानकारियां अवश्य मिली होगी।
एक बात तो बरबस याद आ ही जाता है
सितारों से आगे भी जहां है ,
तुम नहीं तो कोई और ही सही .
जमीं से उठाकर नजर जरा देखो यारों..
जमीं से उठाकर नजर आसमाँ को देखो यारों…
मंजिल मिल ही जाएगी कोशिश करके तो देखो यारों….