स्पेक्ट्रम क्या है? 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला क्या है?
कुछ दिन पहले मैंने आगरा में एक घर ख़रीदा । दिल्ली से आगरा अपना सामान लेकर जाना था । अब आप बताओ सामान दिल्ली से आगरा कैसे जायेगा ? बहुत आसान है ट्रक से , है न । अब सवाल है कि ट्रक कैसे जायेगा ? आप सोच रहे होंगे क्या बकवास सवाल है ? सबको पता है ट्रक रोड से ही जाता है आसमान में उड़ के तो जायेगा नहीं । बिलकुल सही कह रहे है जब सामान को एक शहर से दूसरी शहर ले जाना होता है तो हमें ट्रक से ले जाना पड़ता है और ट्रक तो रोड से ही होकर जाता है । इसी प्रकार जब हम टेलीविज़न देखते है , टेलीफोन का इस्तेमाल करते है ,इन्टरनेट सर्फ करते है , गाना या फोटो डाउनलोड करते है , SMS , MMS इत्यादी भेजते है तो प्रत्येक स्थिति में डाटा (आंकडें) एक जगह से दुसरे जगह ट्रान्सफर होते है और वे डाटा सामान की तरह सड़क से चल के नहीं जाते । तो कैसे जाते है ?
डाटा का ट्रान्सफर जिसके माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह ट्रान्सफर होता है उसे स्पेक्ट्रम कहते है । अब दिल्ली से आगरा जाने के लिए ट्रक मेरठ के रास्ते जा सकता है परन्तु बहुत अधिक ट्रैफिक होने के कारण ट्रक बहुत धीरे धीरे चल रहा था क्योंकि सड़क बहुत संकरी है और उस पर चलने वाले गाड़ियों की संख्या बहुत अधिक है । मैं ट्रक में बैठा ठीक उसी प्रकार उब रहा था जिस प्रकार जब आप You Tube पर कोई विडियो देख रहे हो और विडियो रुक रुक कर चल रहा हो और आप उब जाते है । तब आप क्या सोचते है ? यही न की काश ! यह बहुत तेजी से चल रहा होता । अब जब मेरा ट्रक तेजी से नहीं चल रहा है तो आपका विडियो कैसे चलेगा ? वैसे ये एक मजाक है ट्रक का विडियो से क्या लेना देना । मेरा ट्रक इसलिए तेजी से नहीं चल रहा है कि एक ही रोड पर बहुत सी गाड़ियाँ एक साथ चल रही है जिससे ट्रक के चलने में दिक्कत हो रही है । अब आप कहोगे तो यमुना एक्सप्रेसवे से क्यों नहीं चले जाते, जिसमे 150 km / h की स्पीड का आन्नद लेते हुए दिल्ली से आगरा बस दो घंटे में पहुँच जाते।ऐसा इसलिए संभव है क्योकि सड़क की चौड़ाई बहुत अधिक है । आपका सुझाव बिलकुल सही है लेकिन इस स्पीड के मजा लेने के लिए मुझे एक्सप्रेसवे पर 400 रूपये का टोल टैक्स देना होगा । जिस प्रकार सडक पर गाड़ियों की स्पीड उस सड़क की चौड़ाई पर निर्भर करता है उसी प्रकार स्पेक्ट्रम से डाटा का ट्रान्सफर उसकी बैंडविड्थ पर निर्भेर करता है जिस स्पेक्ट्रम का बैंडविड्थ जितना ज्यादा होगा आंकड़ों का सम्प्रेष्ण (डाटा ट्रान्सफर ) उतना ही तेजी से होगा ।बैंडविड्थ के आधार पर ही स्पेक्ट्रम को 2G ,3G तथा 4G इत्यादी केटेगरी में बांटा जाता है । 4G का अर्थ है fourth generation अर्थात चौथी पीढ़ी का । आधुनिकतम स्पेक्ट्रम इसी श्रेणी का है इसमे डाटा ट्रान्सफर (आकड़ों का सम्प्रेष्ण) काफी तेजी से होगा । वर्तमान में भारत में 3G स्पेक्ट्रम से सेवाएं प्रदान की जा रही है जिससे आपका स्मार्ट फ़ोन चल रहा है । बैंडविड्थ के आधार पर स्पेक्ट्रम की निम्नलिखित केटेगरी है –
Cable TV 140 – 850 MHz
2G 800 -1800 MHz
3G 2100-2800 MHz
4G Internet, 2300-3200 MHz
Broadband
(ये आकड़े सिर्फ सांकेतिक है इनका कोई फिक्स्ड मान नहीं है)
जिस प्रकार चौड़ी सड़क अर्थात यमुना एक्सप्रेसवे से जाने के लिए ज्यादा शुल्क देना पड़ता है उसी प्रकार 3G स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने के लिए ज्यादा चार्ज देना पड़ता है । अब सवाल यह है कि ये स्पेक्ट्रम किसकी है और यह किस प्रकार से डाटा ट्रान्सफर में काम आता है ? एक बात बता दूँ ये स्पेक्ट्रम मेरी नहीं है क्योकि मेरे पास इतने पैसे नहीं है । मुझे ही क्यों टाटा, रिलायंस या एयरटेल के पास भी उतने पैसे नहीं है कि अपना स्पेक्ट्रम लांच कर सके ।तो उनमे और मेरे में क्या अंतर है ? और मैं दुखी क्यों होऊं ? आप भी मुस्कुराइए !! आप के उपर कौन सी बंदिश है ? इसके लिए बहुत अधिक धन की जरुरत होती है जो सरकार के पास है । जिस प्रकार ट्रांसपोर्टर के पास ट्रक होता है रोड नहीं । रोड सरकार बनाती है और ट्रांसपोर्टर को ट्रक चलाने का एक परमिट निश्चित समय के लिए दिया जाता है । उसी प्रकार सरकार इसरो के जरिये सॅटॅलाइट लांच करती है जिसके ट्रांसपोंडर में C Band ,S Band ,Ka Band ,Ku Band इत्यादी लगे होते है । सरकार इन bands का उपयोग करने के लिए विभिन्न मोबाइल कंपनियों जैसे एयरटेल ,Relience ,vodafone ,Idea इत्यादी ,को लाइसेंस एक निशित समय के लिए देती है । ये कंपनियां इनका उपयोग कर अपने कस्टमर को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ प्रदान करती है जैसे – Voice Call, Video Call ,SMS, MMS, Internet Surfing, Gaming इत्यादी |
अब एक नया सवाल ये है कि ये 2G स्पेक्ट्रम घोटाला क्या है ? जिस प्रकार एक ट्रांसपोर्टर को रोड परमिट देने के लिए उसको अपने बिज़नेस का पूरा ब्यौरा देना होता है जैसे कि वह प्राइवेट काम के लिए ट्रक का उपयोग करना चाहता है या बिज़नेस के लिए । वह किस किस एरिया में जाना चाहता है ? अगर वह पुरे देश कि सड़को का इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे नेशनल परमिट दी जाती है और उसे ज्यादा शुल्क चुकाना पड़ता है । यदि वह किसी राज्य की सीमा में ही सड़को का इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे स्टेट परमिट दी जाती है । लेकिन इस सबके साथ उसे वैध ड्राइविंग लाइसेंस वाले ड्राइवर चाहिए जिसे गाड़ी चलाने का अनुभव हो । उसी प्रकार स्पेक्ट्रम का आवंटन करते समय सरकार को भी यह देखना होता है कि लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाली कंपनी के पास इस कार्य का कितना अनुभव है और उसके वर्तमान बिज़नेस किस प्रकार है । उसके द्वारा प्रदत सेवाएं संतोषप्रद है कि नहीं । 2G स्पेक्ट्रम का लाइसेंस देते समय सरकार इन्हीं बातों का ध्यान नहीं रख पायी । लाइसेंस उन लोगो को आवंटित किये गए जिनका पहले से इस बिज़नेस से कोई अनुभव नहीं था और उन्होंने इसे लेकर दुसरे कंपनियों को ऊँचे दामो में बेच दिया । आप सोच रहे होंगे कि इसमे गलत क्या है ?
यदि किसी को मूवी देखना है किसी मल्टीप्लेक्स में जाकर टिकट खरीद कर देखने में कोई बुराई नहीं है, न ही इंडियन पीनल कोड में कोई गुनाह । चूँकि मल्टीप्लेक्स में टिकट भी आदमी को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर मिलता है इसलिए कोई आदमी जाकर सबसे पहले लाइन में लगकर कई टिकट ले ले और जब आप अपनी गर्लफ्रेंड के साथ मूवी देखने जाए तो काउंटर पर जाने पर पता चले कि सारे टिकट बिक चुके है | आपको टिकट न मिले तो आपको कैसा लगेगा ? और काउंटर के सामने वह आदमी 150 रूपये के टिकट 400 रूपये में बेचे तो यह गलत है । आपको बुरा लगेगा आप पुलिस से शिकायत कर सकते है और वह आदमी जेल की हवा खा सकता है क्योकि भारतीय दंड सहिता (इंडियन पीनल कोड ) में यह अपराध है । सरकार ने भी पहले आओ पहले पाओ की इसी नीति से स्पेक्ट्रम का आवंटन किया था । शाहिद बलवा (स्वान टेलिकॉम ) और संजय चंद्रा ( unitech ) के पहले लाइन में लग कर लाइसेंस लिया ।
स्वान टेलिकॉम को इस बिज़नेस का कोई अनुभव नहीं था उसने 1500 करोड़ में लाइसेंस लिया और उसके 45 % शेयर ही UAE की कंपनी Etisalat को 6000 करोड़ में बेच दिया ।इसी प्रकार UNITECH को भी बिज़नेस का पहले से कोई अनुभव नहीं था उसने लाइसेंस लेने के लिए सरकार को 365 मिलियन डॉलर दिया और लाइसेंस लेने के पश्चात् न तो एक भी मोबाइल टावर लगाया न तो एक भी आउटलेट खोला बल्कि उसके 60 % शेयर नार्वे की कंपनी Telenor को 1 .36 बिलियन डॉलर में बेच दिया ।स्पेक्ट्रम का लाइसेंस देते समय सरकार की शर्त थी की कंपनियों को पहले साल में 10 % टावर छोटे शहरों में लगाना होगा जो की रोल आउट ऑब्लिगेशन था | इसलिए भारतीय दंड सहिता (इंडियन पीनल कोड ) में इसे अपराध माना गया और वे भी जेल की हवा खा रहे है । जिस प्रकार टिकट खरीदने वाले की मंशा मूवी न देखकर उसे ब्लेक में बेंचकर पैसे कमाने की थी जिसके कारण अपराध माना गया । इन कंपनियों की भी मंशा सर्विस न देकर बल्कि ब्लेक में बेंचकर पैसे कमाने की थी । सरकार की दलील यह है की जिस प्रकार मल्टीप्लेक्स के मालिक को सारे टिकट बिकने के पश्चात् मिलने वाली रकम तो मिल ही गया है उसे ब्लेक में टिकट बिकने से उसे कोई नुकसान नहीं है उसी प्रकार सरकार को स्पेक्ट्रम के बदले जो रकम मिलनी थी वह मिल चुकी है सरकार को कोई वित्तीय नुकसान नहीं है । अब कुछ आप भी तो कहिये !!!