अपनी तकदीर खुद ही लिखनी पड़ती है।
ये चिट्ठी नही, जो दूसरों से लिखवा लोगे।।
कहा जाता है कि यदि पुरी शिद्दत से किसी कार्य के पीछे लग जाए तो एक न एक दिन किस्मत भी मेहरबान हो ही जाता हैं। यही बात सम्राट शिवमणि की हाल में घोषित बीपीएससी की परीक्षा में चयनित होने पर साबित हुई है।
सम्राट को मैं तब से जानता हू जब वह 9वीं कक्षा का छात्र था। उस समय मेरी शादी इस परिवार मे हुई थी। दसवीं कक्षा पास करने के बाद आम बिहारियों की तरह इंजिनरिंग करने या कराने की इच्छा जागृत हुई। I.Sc में एडमिशन के उपरांत एक मध्यमवर्गीय परिवार का लडका पटना में कोचिंग और ट्यूशन की मायाजाल में दाखिल हुआ। लेकिन 12 वीं पास करने के साथ किसी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका। परिवार में घोर निराशा हुई। तब तक मेरा IIT की कोचिंग में एक प्रतिष्ठित नाम हो चुका था इसलिए उम्मीद की नजरें मेरी ओर उठने लगी। तब तक सम्राट का चचेरा भाई राज भी 12 वीं पास कर लिया था मैने भी सकारात्मकता को समेटे हुए दोनों भाई को तैयारी के लिए दिल्ली बुलाया।
मेरे देख रेख में दोनों ने खूब मेहनत की और प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने पसंद के अनुसार राज ने कंप्यूटर साइंस और सम्राट ने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में दाखिला लिया। चार साल पूरा होने के बाद फिर IES की तैयारी के लिए दिल्ली वापस मेरे पास आ गए। एक वर्ष से भी कम समय में राज का भारत सरकार के ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में कंप्यूटर इंजिनियर के पद पर चयन हुआ। थोड़े समय बाद सम्राट भी ONGC में लिखित परीक्षा में सफल हुए। परंतु अंतर्मुखी स्वभाव के कारण साक्षात्कार में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके।
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाले देश की एक प्रतिष्ठित संस्थान ALS IAS में तब तक मैं एक निदेशक के रूप में कार्यरत था। इसलिए मेने ही सिविल सेवा परीक्षा देने की सलाह दे दी। चुंकि घर का वातावरण भी आए दिन सिविल सेवा परीक्षा में चयनित छात्रों की चर्चाओं में था इसलिए इन्हें भी मन बनाते देर न लगी और तैयारी में लग गए। फिर असफलताओं का दौर शुरु हुआ । दो बार सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से चयन सूची तक न पहुंच पाने का मलाल परिलक्षित होने लगा। इसके साथ IFS (Indian Forest Service) की मुख्य परीक्षा भी दो बार दिया और अंतिम सफलता हाथ न आया। फिर UPPCS में 2016, 2017 ,2018 में भी अंतिम सूची में स्थान बनाने में किस्मत ने साथ नहीं दिया। इसके अतरिक्त UPPCS में भी फॉरेस्ट की ACF पोस्ट के लिए दो बार साक्षात्कार मे शामिल हुए लेकिन किस्मत ने साथ न दिया।
मेरे कंधो पर उम्मीद का बोझ है साहब
हार जाता हुं बार बार
लेकिन एक दिन जीतना जरूर है।
एक तरफ जहां इसको नौकरी मिल नही रहा था दुसरी ओर जिसको मिली थी वह रेगुलर कॉलेज से M.Tech करने के लिए नोकरी से इस्तीफा दे दिया था। खैर, थोड़े समय के बाद उसका फिर से चयन हो गया और अभी वह इसरो मुख्यालय तिरुवंतपुरम में साइंटिस्ट D के पद पर कार्य कर रहा है। बहुत तेज़ी से इसरो में अपनी जगह बनाई और साइंटिस्ट E के रूप में प्रोन्नति होने वाली है। एक भाई जहां नौकरी छोड़ कर दुसरी करने लगा वही दूसरा इन्जिनियरिंग करने के बाद इतने समय तक बेरोजगारों की श्रेणी से ऊपर न उठ सका था।
सम्राट के पिताजी श्री सचिदानंद सिंह एक सीमांत किसान है। एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया को ऐसी स्थिति में लोगों के कितने ताने सुनने को मिलते होगे। एक तरफ पुत्र के शादी का दवाब और दुसरी ओर उसकी बेरोजगारी के साथ साथ उसके खर्चों की ज़िम्मेदारी। इसके अतरिक्त बाबू सचिदानंद सिंह की तीन और पुत्रियों की शादी का भार। हालांकि परिवार के पास पूर्वजों की अर्जित की हुई कृषि योग्य काफी जमीन और सिवान गांधी मैदान में 6 कट्ठा जमीन में बना एक विला भी है। फिर भी शायद ही इसकी कोई इस पीड़ा की कल्पना वह आदमी कर सके जो इस पीड़ा से न गुजरा हो। फिर भी कभी भी उनकी बेबसी कभी उनके आचार विचार और भाव भंगिमा से परिलक्षित किसी के सामने न हुई। उनका भगवान शिव के प्रति समर्पण और विश्वाश था कहते थे कि जब शिव जी चाहेंगे तब सब अच्छा होगा। हालंकि मुझे भी अपनी संस्कृति और पूजा पाठ में यकीन है। लेकिन विज्ञान के विद्यार्थी होने के नाते सीमाएं हैं। उनका भोलेपन से इतना निश्छल और अटूट विश्वास कभी कभी मेरे समझ के परे होता था। लेकिन आज यह वाक्यांस चरितार्थ हुआ कि” बिन कृपा हरि तृण नहीं डोले”। हम चाहे जितनी पढ़ाई लिखाई कर ले बड़े लोगों के अनुभवों से बहुत कुछ सीखना बाकी ही है।
इन्जिनियरिंग करने के बाद अगर दो वर्ष से अधिक किसी भी वजह से बेरोजगार हो गए , चाहें वह परीक्षा की तैयारी के क्रम में ही क्यों न हों वह डिग्री एक साधारण स्नातक की डिग्री ही रह जाता है जिसका बाजार भाव सामान्य स्नातक के भी कम हो जाता है। ऐसे में इन्जिनियरिंग की डिग्री पर कोई नौकरी मिलने से रहा और जो सामान्य स्नातक के लिए नौकरी हो सकता है उसमें इन्हें ओवर क्वालीफाइड समझा जाता है इसलिए नौकरी नहीं मिलती है। इसलिए इन्जिनियरिंग करने वाले छात्रों और अभिभावकों को भविष्य की योजना बनाते समय इस बात को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए। बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों की गलतियों से सबक लेते हैं।
इधर परिवार और रिश्तेदारों की उंगलियां सम्राट के साथ साथ दबी जुबान में मेरे पर भी उठने लगी। मुझे भी कही न कही पछतावा होने लगा था और उसकी इस स्थिति तक पहुंचने में खुद को भागीदार मानने लगा था। मुझे भी ऐसा लगने लगा था कि इस लड़के के किस्मत में सरकारी सेवा शायद है ही नही। लेकिन सम्राट ने न हिम्मत हारी न हौसला। लगातार अपने आपको अपडेट करते हुए प्रत्येक चुनौती का डंटकर मुकाबला किया और BPSC की परीक्षा में शामिल हुए और अपने पहले प्रयास में सफलता हासिल की है।
सही कहा है-
जूनून आपके काम को शुरू करता है,
उम्मीद आपको चलते रहने की प्रेरणा देती है
और सतत प्रयास आपके काम को पूरा कर देता है।
इसलिए सोच समझकर करियर का चुनाव करें और तब तक पूरी शिद्धत से लड़े जब तक लक्ष्य हासिल न हो जाए।
सादर आभार !
सादर आभार !
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