वित्त मंत्रालय सरकार का वित्तीय प्रशासन देखता है। यह उन सभी वित्तीय मामलों से संबंद्ध है जिनका प्रभाव समूचे देश पर पड़ता है। इसमें विकास और अन्य कार्र्यों के लिए संसाधन जुटाना शामिल है। यह सरकार के व्यय का निगमन करता है, जिसमें राज्यों को हस्तांतरित किए जाने वाले संसाधन भी शामिल हैं।
इस मंत्रालय के चार विभाग हैं: (1) आर्थिक मामले (2) व्यय (3) राजस्व (4) विनिवेश।
आर्थिक मामले : आर्थिक मामले से संबंधित मुख्य विभाग हैं:
- वित्त प्रभाग
- बजट प्रभाग
- बैंकिंग और बीमा प्रभाग
- पूंजी बाजार
- द्विपक्षीय सहयोग
- विदेश व्यापार
- फंड बैंक प्रभाग
- राजकोषीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन और प्रशासन
- सहायता लेखा और लेखा परीक्षा प्रभाग
- आर्थिक प्रभाग
यह विभाग अन्य कार्य करने के साथ चालू आर्थिक प्रवृत्तियों पर नजर रखता है तथा सरकार को देश की आंतरिक और विदेशी आर्थिक व्यवस्था के विभिन्न विषयों पर जैसे- मूल्य, ऋण, राजकोषीय एवं मुद्रा नीति तथा पूंजी निवेश नियमन आदि पर परामर्श देता है। यह विभाग राष्ट्रीयकृत बैंकों, जीवन एवं सामान्य बीमा संबंधी नीतियों की देखरेख करता है। इसके अतिरिक्त यह विभाग भारत सरकार की टकसाल और मुद्रा मुद्रणालयों, सिक्यूरिटी प्रेसों और सिक्यूरिटी पेपर मिलों का प्रबंधन भी संभालता है। खा एवं कृषि संगठनों (एफएओ), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), संयुक्त राष्ट्र औगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ) जैसे विशेष अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के जरिए मिलने वाली सहायता और विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी, संस्कृति एवं शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय या द्विपक्षीय समझौते के अंतर्गत प्राप्त सहायता को छोड़कर शेष सभी विदेशी तथा तकनीकी सहायता पर भी यह विभाग नजर रखता है। आर्थिक कार्य विभाग केद्रीय बजट और राष्ट्रपति शासन वाले राज्यों तथा केद्रशासित प्रदेशों के बजट तैयार करके उन्हें संसद में पेश करता है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का कुल अंतप्र्रवाह 25,888 मिलियन डॉलर रहा। औद्योगिक नीति विभाग के अनुसार अगस्त 1991-मार्च 2010 के मध्य भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का कुल अंतप्र्रवाह 1,32,428 मिलियन डॉलर रहा है।
सेवा क्षेत्र जिसमें वित्तीय और गैर-वित्तीय सेवाएं शामिल हैं, ने देश में आये हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इक्विटी का 21 प्रतिशत प्राप्त किया। देश में वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान इस क्षेत्र में कुल 4,392 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अंतप्र्रवाह रहा। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के मामले में निर्माण क्षेत्र जिसमें परिवहन और राष्ट्रीय राजमार्ग शामिल हैं, में कुल 2,868 मिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में इस क्षेत्र का दूसरा स्थान रहा। इस मामले में हाउसिंग व रियल इस्टेट का स्थान तीसरा रहा जिसने कुल 2,844 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त किया। दूरसंचार क्षेत्र में इस वित्त वर्ष के दौरान कुल 2,554 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया।
जनवरी-मई 2010 के मध्य कार्पोरेट विलय व अधिग्रहण और प्राइवेट इक्विटी ट्रांजेक्शन पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में दोगुना हो गया। जनवरी-मई 2010 के मध्य देश में कुल 439 कार्पोरेट विलय व अधिग्रहण और प्राइवेट इक्विटी ट्रांजेक्शन के मामले हुए जिनका कुल मूल्य 30 अरब अमेरिकी डॉलर रहा।
विदेशी मुद्रा कोष
रिजर्व बैंक के वीकली स्टेटिस्टिकल सप्लीमेंट के अनुसार 4 जून 2010 को समाप्त सप्ताह के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा कोष 271.09 अरब अमेरिकी डॉलर का था जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 9.88 अरब अमेरिकी डॉलर अधिक है।
विदेशी संस्थागत निवेश
मई 2010 में देश में कुल पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों की संख्या 1710 थी और जनवरी-मई 2010 के दरमियान इक्विटी में कुल विदेशी संस्थागत निवेश 4606.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। 1 जून से 14 जून 2010 के मध्य विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इक्विटी में कुल 530.05 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया।
पूंजीगत वस्तुएं
पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन में इस दौरान 72.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान इस क्षेत्र में 5.9 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई थी। उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में 37 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई जिससे साफ जाहिर है कि टेलीविजन और फ्रिज जैसी वस्तुओं की खरीद देश में लगातार बढ़ रही है।
औद्योगिक उत्पादन
अप्रैल 2010 में औद्योगिक उत्पादन में 17.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में विनिर्माण सेक्टर का कुल योगदान 80 प्रतिशत है, की वृद्धि दर अप्रैल 2010 के दौरान 19.4 प्रतिशत रही। इसकी तुलना में अपै्रल 2009 के दौरान यह वृद्धि दर मात्र 0.4 प्रतिशत थी।
विभिन्न क्षेत्र में प्रगति
वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में खनन में (10.6 प्रतिशत), विनिर्माण में (10.8 प्रतिशत), विद्युत, गैस और जल सप्लाई में (6.5 प्रतिशत), निर्माण में (6.5 प्रतिशत), वाणिज्य, होटल, परिवहन और दूरसंचार में (9.3 प्रतिशत), वित्तयन, बीमा, रियल इस्टेट और बिजीनेस सेवाओं में (9.7 प्रतिशत), सामुदायिक, सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाओं में (5.6 प्रतिशत) वृद्धि हुई। वित्त वर्ष 2009-10 में सकल राष्ट्रीय आय में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया, जबकि वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान यह वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान प्रतिव्यक्ति आय में 5.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
सकल घरेलू उत्पादन
सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अनुमानों के अनुसार वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रही। इस वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के दौरान वृद्धि दर 8.6 प्रतिशत रही। इस शानदार वृद्धि दर के पीछे मुख्य कारण विनिर्माण क्षेत्र का शानदार प्रदर्शन रहा जिसे सरकार के रवैये से बढ़ावा मिला। वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान 7.4 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर सरकार द्वारा अनुमानित 7.2 प्रतिशत से ज्यादा रही। सरकार द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार जनवरी-मार्च 2010 के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 16.3 प्रतिशत रही।
प्रतिव्यक्ति वृद्धि
प्रतिव्यक्ति आय और उपभोग में वृद्धिदर जो सामान्यतया सकल कल्याण का पैमाना माने जाते हैं, में पिछले दो वर्षों में गिरावट दर्ज की गई है। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट का है। प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धिदर जिसे स्थिर बाजार मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर मापा जाता है, 2008-09 में 3.7 प्रतिशत रही। इसकी तुलना में वित्त वर्ष 2007-08 में यह वृद्धि दर 8.1 प्रतिशत रही थी। बाद में वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि दर बढ़कर 5.3 प्रतिशत हो गई। जहां तक उपभोग का संबंध है, इसमें वित्त वर्ष 2007-08 से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। 2009-10 में इस क्षेत्र में वृद्धि दर गिरकर 2007-08 की तुलना में मात्र एक-तिहाई रह गई है।
सामाजिक क्षेत्र
वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान ग्लोबल आर्थिक संकट को देखते हुए सरकार ने देश की आम जनता को राहत देने के लिए कई कदम उठाए व कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किये। आलोच्य वित्त वर्ष के दौरान केद्र सरकार का ग्रामीण विकास सहित सामाजिक सेवाओं में खर्च कुल खर्च (आयोजना व गैर-आयोजना) का 19.46 प्रतिशत रहा। इसकी तुलना में सामाजिक क्षेत्र में खर्च 2003-04 के दौरान कुल खर्च का मात्र 10.46 प्रतिशत ही था।