NEET का परीक्षाफल के साथ छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ क्रूर मजाक …
Spread the love

NEET UG 2021 के रिजल्ट जारी हो चुके हैं। परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों की संख्या 15,44,275 थी जिसमे से 8,70,075 विद्यार्थी सफल घोषित किए गए। उसमें कई छात्र-छात्राओं को अच्छे अंक मिले हैं। जिससे वह एमबीबीएस कोर्स में पढ़ाई के लिए प्रवेश लेंगे।

देश में 535 कॉलेज में 80 हजार से थोड़ी ही ज्यादा एमबीबीएस की सीटे हैं। और करीब 38 हजार BDS की सीटें हैं।

अगर सभी सीट फूल हो जाने की स्थिति में भी 1 लाख 18 हजार छात्रों को ही नामांकन हो सकेगा। तो फिर 7 लाख 52 हजार से अधिक छात्रों के सफल होने का क्या मतलब है ?

यह छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ एक सुनियोजित राष्ट्रीय स्तर की धोखेबाजी है।

देश में कुछ प्राइवेट मेडिकल कॉलेज है जिनकी प्रति वर्ष की फीस 14 लाख से 23 लाख रूपये तक है। यह फीस सरकारी रिकॉर्ड पर है । जिसमें एडमिशन लेने के लिए NEET क्वालीफाई करना जरूरी होता है। इनमें से अधिकांश कॉलेज प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनेताओं ,उद्योगपतियों या उनके सगे संबंधियों के आधिपत्य में है या उनका मालिकाना हक़ है अथवा ट्रस्ट के माध्यम से संचालित होते हैं।

अब असली खेल यह है इन कॉलेज में एडमिशन दिलाने के लिए एक एक सीट पर करोड़ों की लेन देन जो पिछले दरवाजे से होती है। इन सीटों को अपने नालायक बच्चो को दिलाने के लिए डॉक्टर्स / नर्सिंग होम के मालिक या बिजनेस करने वाले लोग कोई भी रकम देने के लिए तैयार रहते हैं। उनके बच्चे का रैंक जितनी नीचे डोनेशन उतनी ज्यादा लगती है जो कि एक अनुमान के मुताबिक 1 करोड से 5 करोड़ रूपए तक होती है।

कुछ सीटे विदेशी छात्रों के लिए रिजर्व होता है। जिन लोगों के बच्चें NEET की क्वालीफाई अंक भी प्राप्त नहीं कर पाते उनके लिए इस कोटे में डॉलर से पेमेंट कराकर एडमिशन दिया जाता है। जबकि कुछ मैनेजमेंट कोटा के नाम पर होता है। जिसमें भी एडमिशन लेने वाले छात्रों के अभिभावकों से बहुत बडी रकम वसूल किया जाता हैं।

जब ऐसे एक छात्र जिसकी MBBS करने की लागत ही 1 करोड़ से 8 करोड़ तक है। अब डॉक्टर की डिग्री लेने के बाद उससे परमार्थ/लोक कल्याण की उम्मीद कैसे रखी जा सकती है। वह इस रकम की पूर्ति के लिए अनावश्यक 4-6 टेस्ट CT स्कैन MRI , ULTRASOUND इत्यादि तो लिखेगा ही जिसमें 40% तक कमिशन मिलता है।

दो चार दवाई फालतू भी लिखेगा जिसमे दो रुपए का कैप्सूल/टैबलेट 30 रुपए का बिकता हो और वहां से भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 20-50% तक आमदनी हो सके।

देशव्यापी इस घोटाले का प्रसाद राज्य सरकार से केंद्र सरकार के विभागीय अधिकारियों तथा राजनीतिक दलों को भी गिफ्ट/चंदा इत्यादि के रूप में परोसा जाता है।

नोट: इस लेख के माध्यम से किसी बंधु/समाज/ प्रोफेशन के प्रति कोई वैमनस्य भाव की मंशा नहीं है। बल्कि सरकार की नीति की विवेचना और NTA की सोच पर ध्यान केंद्रित करने की है।

लेखक अरविंद सिंह

शिक्षाविद एवं सलाहकार

ASA -The best coaching for JEE and NEET

Author