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आम जिंदगी में जब हमें रुपयों की जरुरत होती है तो हम अपने घर में माँ अथवा पिताजी से माँग लेते है । जब पिताजी को रुपयों की जरुरत होती है तो वे अपने निकट सम्बन्धियों से रूपये मांगते है । जब सम्बन्धियों से रूपये नहीं मिलते तो उन्हें बैंक से रूपये उधार लेते है । इन सब मे एक बात कॉमन है कि रूपये का स्थानांतरण होता है । लेकिन तीनो स्थितियों में अंतर है –
पिताजी या माँ से रूपये बच्चे जो लेते है वह वापस नहीं किये जाते । सम्बन्धियों या मित्रों से जो रूपये लिए जाते है वह उधार कहा जाता है और उसे एक निश्चित समय में बिना किसी अतिरिक्त ब्याज के वापस किया जाता है ।लेकिन बैंक से जो रूपये लिए जाते है वह ऋण कहा जाता है जिसे ब्याज सहित वापस करने के लिए करार किया जाता है । इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति अथवा संस्था के द्वारा एक करार के अंतर्गत जब रूपये लिए जाते है और उसके बदले एक करार पत्र पर हस्ताक्षर करके लिया जाता है तो वह ऋण पत्र कहा जाता है इसमें एक निश्चित ब्याज की दर से ब्याज दिया जाता है । आइये समझते है यह ऋण बाजार क्या है और यह कैसे कार्य करता है ?

  • एक आम आदमी के लिए ऋण बाज़ार से तात्पर्य  क्या है?

जब सरकार के किशी निकाय या संस्था  को रुपयों की जरुरत होती है तो सरकार भी एक प्रकार से एक पत्र जारी करती है जिसे प्रतिभूति कहते है ।इस प्रतिभूति में ब्याज की एक निश्चित  रकम देने का वादा किया जाता है । रकम देने वाले को यह प्रतिभूति दिया जाता है । अत : ऋण बाज़ार वह बाज़ार है जहां निश्चित आय या ब्याज वाली तरह-तरह की प्रतिभूतियां जारी की जाती हैं और खरीदी-बेची जाती है।इस प्रकार की खरीद बिक्री में आम जनता के साथ साथ संस्थागत निवेशक भी भाग लेते है । ये प्रतिभूतियां  केंद्र या  राज्य सरकार,  सरकारी निकायों ,नगर निगम एवं  वाणिज्यिक इकाइयों, जैसे बैंकों,  वित्तीय संस्थाओं,सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां, पब्लिक लिमिटेड कंपनियों  की तरफ से जारी की जाती हैं।लोग अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए  इसमें निवेश  करते है | इनमें सबसे अहम होते हैं केंद्र व राज्य सरकारों के बांड। सरकार को जब विकाश कार्यों के लिए रुपयों की जरुरत होती है तब सरकारें अपनी उधारी की व्यवस्था इन्हीं प्रतिभूतियों  से करती हैं।

  • मुद्रा बाज़ार से तात्पर्य  क्या है ?

जिस बाज़ार में प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री होती है वह बाज़ार मुद्रा बाज़ार कहा जाता है । मुद्रा बाज़ार मूलत: छोटी अवधि वाली प्रतिभूतियों व प्रपत्रों के जारी करने व खरीद-बिक्री से संबंधित है। इस  बाज़ार में ट्रेजरी बिल,  बिल आफ एक्सचेंज (bill of exchange ) ,कमर्शियल पेपर  और कम समय की परिपक्वता वाले दूसरे प्रकार की  प्रपत्रों की खरीद बिक्री होती है। यहां छोटी या कम समय की प्रतिभूतियों का तात्पर्य  उन प्रपत्रों से हैं जिनकी परिपक्वता अवधि एक साल से कम होती है।

  •  लोग निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों में क्यों निवेश करते है ?

जब निवेश में  जोखिम कम से कम लिया जाता है तो निवेश को निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है । निश्चित आय वाली प्रतिभूतियां परिपक्व होने पर मूलधन से ज्यादा रकम ब्याज के रूप में  देती हैं। ऋण प्रतिभूतियां वास्तव में  एक तरह का उधार हैं जो संस्थाएं या कंपनियां निवेशकों से जुटाती हैं।  इन्हें जारी करनेवाली कम्पनियाँ  पूर्व निर्धारित शर्तो के मुताबिक जरी करती है इसलिए प्रत्येक  ऋण प्रतिभूतियों पर संस्था की संपत्ति के आधार पर निश्चित प्रभार रहता है। कंपनी की चल व अचल संपत्तियों का एक निश्चित मुल्य होने के कारण  प्रतिभूति  आमतौर पर  सुरक्षित मानी जाती है।

ये बात अलग है कि निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों पैर मिलने वाली ब्याज आम तौर पर कम ही होती है परन्तु इन  प्रतिभूतियों में निवेश से निवेशकों को  निश्चित  लाभ होता है क्योंकि इससे उनकी पूंजी सुरक्षित तरीके से बढ़ती रहती है। साथ ही उन्हें ब्याज के रूप में कम ही सही लेकिन एक  नियमित आय होती ही  है।  अत  : सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर निवेशक जोखिम से पूरी तरह बच सकता  हैं।अन्य वित्तीय प्रतिभूतियों की अपेक्षा  ऋण प्रतिभूतियां  कम अस्थिरता दर्शाती है। इसी  कारण से ज्यादा सुरक्षा का वादा कर कम  ब्याज  करती हैं।इसलिए वितीय सलाहकार यह सुझाव देते है है कि प्रत्येक निवेशक को निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों को एक अनुपात में अपने पोर्टफोलिओ में अवश्य रखना चाहिए । अपने पोर्टफोलियो में एक निश्चित अनुपात में इस प्रकार की प्रतिभूतियों को  रखना समझदारी का काम  है।वितीय संकट के समय ये बहुत काम  आता है |

  • एक निवेशक को सरकारी प्रतिभतियों में निवेश के क्या फायदे हैं ?

अपने मूलधन को सुरक्षित रखना एक निवेशक की पहली प्राथमिकता होती है । अत : सरकारी प्रतिभतियों  में निवेश करने का सबसे बड़ा फायदा है  कम से कम जोखिम अर्थात लगभग  शून्य जोखिम। ये विभिन्न प्रकार के प्रतिभूतियों में सबसे ज्यादा सुरक्षित है। इनमें बराबर ट्रेडिंग होती रहती  है। इसलिए इन्हें कभी भी बेचकर अपना धन  निकला जा सकता है। अर्थात इस प्रकार के निवेश में तरलता रहता है ।  इस प्रकार की प्रतिभूतियों पर मिलनेवाले ब्याज पर कोई स्रोत पर की जाने वाली  आयकर कटौती (TDS) नहीं  किया जाता है ।संकट के समय  इन्हें गिरवी रखकर अनेक वित्तीय संस्थानों अथवा बैंकों से  इनके एवज में आसानी से उधार लिया जा सकता है। सरकारी सेक्टर की प्रतिभूतियों पर करों में छूट मिलती है। कर में राहत पाने के लिए भी  इस प्रकार की प्रतिभूतियों में निवेश किया जाता है ।

  • भारत में निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों कौन जारी कर सकता है?

नियमों के प्रावधान के तहत कोई  केंद्र या  राज्य सरकारें,  बैंक व संस्थाएं, सावर्जिनक निकाय के उपक्रम , कानूनी रूप से बनी कॉरपोरेट या दूसरी इकाइयां  निश्चित आय वाली प्रतिभूतियां जारी कर सकती है।प्रतिभूतियों को क़ानूनी संरक्षण प्राप्त  होता है इसलिए  उनकी प्रतिभूतियों का रूप कानून और नियंत्रण संबंधी नियमों से प्रभावी होगा। निवेशक का धन इसलिए सुरक्षित रहता है ।

  • भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ऋण बाजार का क्या महत्व है 

 सीमित संसाधनों के कारणभारत जैसे देश में ऋण बाजार  के अच्छी तरह विकसित हुए बगैर इंफ्रास्ट्रक्चर के बेहतर विकाश के लिए लंबी अवधि के वित्तीय संसाधन जुटाना मुश्किल  है। सबसे खास बात है कि यह दूसरे लोगों की बचत को बेहतर व सुरक्षित रिटर्न देकर उन्हें विकास में भागीदार बनाता है। यह बाजार अभी अपने यहां ठीक से विकसित नहीं है, क्योंकि आम लोंगो में जानकारी  और भरोसे का बहुत आभाव है इसलिए रिजर्व बैंक के द्वारा उठाये गए क़दमों और नीतियों  का लाभ निचले स्तर तक नहीं  पहुंचते या इनका लाभ निचले स्तर तक नहीं पहुँचने में बहुत समय लगता है ।

लंबी और छोटी अवधि के उद्देश्यों का ध्यान में रखते हुए इससे तरलता प्रबंधन को बनाए रखने में मदद मिलती है। चूंकि सरकार अपनी प्रतिभतियां या बांडों को लंबी और छोटी अवधि के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जारी करती हैं इसलिए इनका इस्तेमाल न सिर्फ कर्ज के रूप में धन को जमा के लिए  किया जाता है बल्कि आंतरिक ऋण प्रबंधन, वित्तीय प्रबंधन और छोटी अवधि के तरलता प्रबंधन में इसका अहम रोल साबित हुआ  है। सरकारी प्रतिभूतियों  पर आए रिटर्न को बेंचमार्क रिटर्न माना के जाता है और वित्तीय नियमों में इसे रिस्क फ्री रिटर्न माना जाता है। ये प्रतिभूतियां आम तौर पर दस  साल की अवधि वाले सरकारी बांड होता है |

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