By Monika Singh
ज़िन्दगी ये तो नहीं तुझको संवारा ही न हो
कुछ ना कुछ तेरा एहसान उतारा ही न हो
दिल को छू जाती है रात की आवाज कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो
कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर
सोचता हूँ तेरे आँचल का किनारा ही न होज़िंदगी एक खलिश दे के न रह जा मुझको
दर्द वो दे जो किसी सूरत गवारा ही न हो
सोचता हूँ तेरे आँचल का किनारा ही न होज़िंदगी एक खलिश दे के न रह जा मुझको
दर्द वो दे जो किसी सूरत गवारा ही न हो
शर्म आती है के उस शहर में हम हैं के जहां
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो
वो कागज़ के लिबासों में सरे बाज़ार मैं ही था
कहानी बिक गयी जिसमे अहम् किरदार मैं ही था
खताएं भाइयों की थीं मगर मेरे ही सर आयीं
बड़ा होने के नाते घर में ज़िम्मेदार मैं ही था
मेरी दहलीज़ पर था सख्त दरवाज़ा उसूलों का
अमीरी तो घर आई थी मगर खुद्दार मैं ही था
मेरी तस्वीर पोते और पोती साथ ले आये
नए घर में जो कुछ भी था अगर ‘बेकार’ – मैं ही था.
कहानी बिक गयी जिसमे अहम् किरदार मैं ही था
खताएं भाइयों की थीं मगर मेरे ही सर आयीं
बड़ा होने के नाते घर में ज़िम्मेदार मैं ही था
मेरी दहलीज़ पर था सख्त दरवाज़ा उसूलों का
अमीरी तो घर आई थी मगर खुद्दार मैं ही था
मेरी तस्वीर पोते और पोती साथ ले आये
नए घर में जो कुछ भी था अगर ‘बेकार’ – मैं ही था.
प्यास दरिया की निग़ाहोँ से छुपा रखी है
एक बादल से बडी आस लगा रखी है॥
तेरी आँखोँ की कशिश कैसे तुझे समझाऊँ
इन चराग़ोँ ने मेरी नीँद उडा रखी है॥
एक बादल से बडी आस लगा रखी है॥
तेरी आँखोँ की कशिश कैसे तुझे समझाऊँ
इन चराग़ोँ ने मेरी नीँद उडा रखी है॥
क्योँ न आ जाए महकने का हुनर लफ्जोँ को
तेरी चिट्ठी जो किताबोँ मेँ छुपा रखी है॥
खुद को तन्हा न समझ लेना नये दीवानोँ
खाक सहराओँ की हमने भी उडा रखी है॥
तेरी चिट्ठी जो किताबोँ मेँ छुपा रखी है॥
खुद को तन्हा न समझ लेना नये दीवानोँ
खाक सहराओँ की हमने भी उडा रखी है॥
अपने हर लफ्ज़ का खुद आईना हो जाऊंगा,
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा,
सारी दुनिया की नजर में है मेरी अहद-ए-वफा,
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊंगा.
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हर आइने में इन्सान को खुद का अक्श नज़र आता है
उसे किसी की आँखों की जरुरत नहीं-
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा,
सारी दुनिया की नजर में है मेरी अहद-ए-वफा,
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊंगा.
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हर आइने में इन्सान को खुद का अक्श नज़र आता है
उसे किसी की आँखों की जरुरत नहीं-
अपने हर लफ्ज़ का खुद आईना हो जाऊंगा,
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा,
सारी दुनिया की नजर में है मेरी अहद-ए-वफा,
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊंगा.
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हर आइने में इन्सान को खुद का अक्श नज़र आता है
उसे किसी की आँखों की जरुरत नहीं-
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा,
सारी दुनिया की नजर में है मेरी अहद-ए-वफा,
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊंगा.
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हर आइने में इन्सान को खुद का अक्श नज़र आता है
उसे किसी की आँखों की जरुरत नहीं-
कभी थक के सो गए हम , कभी रात भर न सोये
कभी हंस के गम छुपाया , कभी मुंह छुपा के रोये..मेरी दास्ताँ-ए-हसरत , वो सुना सुना के रोये
मुझे आजमाने वाले , मुझे आजमा के रोये..
कभी हंस के गम छुपाया , कभी मुंह छुपा के रोये..मेरी दास्ताँ-ए-हसरत , वो सुना सुना के रोये
मुझे आजमाने वाले , मुझे आजमा के रोये..
शब्-ए-गम की आप बीती , जो सुने अन्ज्मन में
कोई सुन के मुस्कराए , कोई मुस्करा के रोये..मैं हूँ भी वतन मुसाफिर , मेरा नाम बेबसी है
मेरा कोई भी नहीं है , जो गले लगा के रोये..
कोई सुन के मुस्कराए , कोई मुस्करा के रोये..मैं हूँ भी वतन मुसाफिर , मेरा नाम बेबसी है
मेरा कोई भी नहीं है , जो गले लगा के रोये..
मेरे पास से गुज़रे , मेरा हाल तक न पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊ , के वो दूर जा के रोये..
वो मिले जो रास्ते में , तो बस इतना कहना उन से
मैं उदास हूँ अकेली , मेरे पास आ के रोये…!!!