By JAGDISH DHRANI
रहो जमीं पे मगर आसमां का ख्वाब रखोतुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो
उभर रहा जो सूरज तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो मत धुंध का हिसाब रखो
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो…..
By Monika Singh
सुना करो मेरी जाँ इन से उन से अफ़साने
सब अजनबी हैं यहाँ कौन किस को पहचाने
यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िले वालों
हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने
मेरी जुनून-ए-परस्तिश से तंग आ गये लोग
सुना है बंद किये जा रहे हैं बुत-ख़ाने
जहाँ से पिछले पहर कोई तश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने
बहार आये तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सेहरा ने
सिवा है हुक़्म कि कैफ़ी को संगसार करो
मसीहा बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने
यूँ तनहा जीने की मुझे आदत सी हो गयी है
अनजान राहो पे चलने की आदत सी हो गयी है
वो मेरी दोस्ती से रहे बे-खबर ता क़यामत
मुझे यह दुआ मांगने की आदत सी हो गयी है
कब तक झूटलउंगी उन से दोस्ती अपनी
तुम्हारी आँखों को सच बोलने की आदत सी हो गयी है
न जाने क्यों शाम ढलते ही यह आखें भीग जाती हैं
मुझे इस चेहरे को अश्कों में छुपाने की आदत सी हो गयी है
आसमा में चमकता हर सितारा यह गवाही देगा
मुझे तुम्हारी यादों में नींदें गवाने की आदत सी हो गयी है
इस दुनिया में शायद मेरी दोस्ती को कोई न समझ सके
लोगो को मुझे न समझने की आदत सी हो गयी है
महफ़िल में हर शख्स यह गिला करता है
मुझे तनहाइयों में डूबने की आदत सी हो गयी है ..
एक राजा अपनी प्रजा से टेक्स बहुत लेता था जिस की वजह से प्रजा परेशान थी !
सब जनता ने एक महात्माजी से प्रार्थना की कि महाराज हम को इस राजा से बचाएं !
महात्मा जी उस राजा के पास गए !
राजा ने उनसे पूछा कि में आपकी क्या सेवा करूं !
महात्मा जी ने कहा महाराज एक काम करना , यह एक मेरे पास सुईं हे !
यह आप अपने पास रख लो और मुझे मेरे मरने के बाद जब आप भी वहां आयें तो दे देना !
राजा ने कहा महाराज में यह सुईं वहां कैसे ला सकता हूँ !
यहाँ से तो में कुछ भी नहीं ले जा सकता !
महात्मा जी बोले फिर राजन आप प्रजा से इतना टेक्स क्यों लेते हैं !
राजा की समझ में यह बात आ गई और उसने टेक्स माफ कर दिया और सब पैसा प्रजा में बाँट दिया !
धरती के अंतर में कितनी पीर छुपी है ,
ना जाने किस तरह धरा की आह रुकी है |
जित देखो , उत दुख ही दुख सुख कहाँ छिपा है,
इत देखो , उत देखो जाने कहाँ रुका है |
मैं समझा था , मैं दुखी, सारी दुनिया है सुखी,
थी मैं कितनी बावरी , सब पर दुख की छाँव री |
कोई धन को बावरा , कोई तन से है मरा ,
किसी को मन का दुख लगा, अपनों से कोई है जुदा |
दुखिया सब संसार है, गम से सारोबार है ,
बाहर से झूठी हँसी, अंतर दुख भंडार है |
सुख दुख मायाजाल है, जग सारा कंगाल है ,
शरण राम की ले मना, दुख भंजन , सुखकार है |
आप से तू और फिर तू से गाली में
आ गए साहब अपनीवाली में
भेद नहीं करते वो साली और घरवाली में
कितनी बार पाए गए पी के टुन्न नाली में
सीखे है सरे ऐब उन्होंने उम्र बाली में
छुटे है जेल से सरकार अभी हाली में
समझ लिजिज्ये लगे हुए है कोई काम जाली में
इतनी जल्दी नहीं होता सुधार हालत माली में
क्या इल्म देंगे आप उन्हें हिंदी या बंगाली में
फर्क ही नहीं जिन्हें गजल और क़वाली में
काटें ही उगते है जनाब बाबुल की डाली में
माहोल चाहे श्रद्धा हो या फिर दीवाली में
बस चट्टे बट्टे ही नहीं भरे है थाली में
शरीफ भी बचे हुए है इस बस्ती मवाली में
जिम्मेदारी को अपना समझिये दोस्तों
चुनाव नहीं होते यु ही खाली में
कुछ नन्हे हाथों को आज हाथ छुडाते देखा है
उन कोमल हाथों पे छालों का एक गुलदस्ता देखा है
तपती कंकरीली धरती पे दिन भर रेंगते देखा है
खाने के चंद निवालों पे मैंने उनको पिटते देखा है
भूख मिटाने की खातिर यहाँ रूह नाचती देखी है
हर गाडी में झांकती उनकी आस टपकती देखी है
हंस कर जीने की आशा को आंसू में बहती देखी है
एक सिक्के के खातिर मैंने ज़िन्दगी भागती देखी है
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